Saturday, 26 September 2020

तोहफा

गिफ्ट मिलना किसे नहीं पसन्द? मुझे बहुत अच्छा लगता है, जब कोई कुछ गिफ्ट कर दे। सामान्यतः आदमी लोगों के पास गिफ्ट के विकल्प कम हैं। महिलाओं के पास ज्यादा है। अब गिफ्ट में आदमी लोगों को जूता-चप्पल, घड़ी, वॉलेट, बेल्ट, सीकड़, अंगूठी या फिर गॉगल...........! सोमरस की बोतल भी गिनी जा सकती है😜। जूता-चप्पल सबसे पहले आया है, इससे घबराएँ मत😁! डरने की बात नहीं। इससे ज्यादा और कोई विकल्प नहीं। यदि होंगे तो भी मेरे किसी काम के नहीं। 

जितना भी गिफ्ट मिला है आज तक, उससे अब बोरियत सी आ चुकी है। अब गिफ्ट या गिफ्ट की विविधता से कोई खुशी नहीं मिलती। अब तो कोई भी गिफ्ट हो, बस मँहगा हो। जितना ज्यादा मँहगा उतनी ज्यादा खुशी। बस वो साथ लेकर चलने लायक हो, जैसे- मोबाइल, घड़ी, पेन इत्यादि। कोई ये कहे कि गिफ्ट की कीमत नहीं देखी जाती, देखी जाती है तो देने वाली की नीयत और मंशा! तो भैया इस जुमले का अब हम पर कोई असर नहीं होता। बकवास है ये सब।

अरे! नहीं-नहीं ! तुम मत घबराओ! तुमसे नहीं कह रहे। तुमसे तो मोहब्बत है हमें 😍 तुम बस हमें नज़र उठा कर देख भर लो ! मुस्कुरा के! हमारे लिए तो इतना ही काफी है। इतने में तो हम महीना गुज़ार लेंगे। 

लेकिन वादा करो अगले महीने वाली किश्त याद रखोगे 😉🤗।

©️अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२६.०९.२०२०

Thursday, 24 September 2020

आँखों की चमक!

उसके आँखों की चमक भी कुछ ऐसी होती थी....... हमसे मिलने पर!
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बारिश क्या कुछ याद नहीं दिलाती........!

©️अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२४.०९.२०२०

Tuesday, 22 September 2020

बनारस तेरी याद आती है ...

बहुत दिन हुए बनारस जाने को नही मिला,
लिखने को गीत-ग़ज़ल मोहब्बत का डोज़ नहीं मिला।

छाया है अंधेरा घनघोर दिल की तंग गलियों में ,
बनारस की गलियों में तेरे संग चलने को नहीं मिला।

ये दूरियाँ दरमियाँ तेरे-मेरे अब तो समझ के बाहर हैं,
मेरे कंधे पर तेरा सर और घाट पर बैठने को न मिला।

सर पर पल्लू, आँखें बन्द और चौखट पर मत्था तेरा टेकना,
आँखे सूनी हैं कि बाबा के दरबार में चेहरा तेरा देखने को नहीं मिला।

ज़रा सा हिलने-डुलने पर भी डर लगता है ज़िंदगी के भँवर में,
गँगा में नाव के हिलने पर कब से तेरा हाथ पकड़ने को नहीं मिला।

तेरे गर्म एहसासों में पिघल कर चाहूँ मैं पूरा का पूरा तुझ में घुल जाना,
गंगा के ठंडे पानी में पैरों को डाल तेरे संग शरारत को मौका नहीं मिला।

शाम ढलती है धीरे-२ और दिल में डर बढ़ने लगता है,
जमाने हो गए तेरे संग लिंबड़ी पर चाय पीने को नहीं मिला।

दिल में लगी आग को देखो अब तो ठंड नहीं मिलती,
वी० टी० पर तेरे संग कोल्ड कॉफ़ी पीने को नहीं मिलती।

फ़साने कई हैं तेरे मेरे काग़ज़ पर लिखने को लेकिन,
इन पर चढ़ी धूल को बहुत दिनों से उतारने को नहीं मिला।

क्या बताएँ बहुत ढूँढने से भी अब रस नहीं मिला,
बहुत दिन हुए बनारस जाने को नहीं मिला ।

©️अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२२.०९.२०२०

Thursday, 17 September 2020

हम बिजली अभियन्ता.....

नौकरी करने चले थे हम सरकारी,
क्या बताएँ बस मति गयी थी मारी।

बिजली अभियन्ता हैं बिजली हम बनाते हैं,
दूर-२ तक पहुँचाते और इसे घर-२ बाँटते हैं।

हवा पानी की तरह ही भाई बिजली भी ज़रूरी है,
है मँहगी मगर सबको सस्ती मिलनी ज़रूरी है।

आवश्यक चीज़ों-सेवाओं का कभी सौदा नही किया जा सकता,
प्रगति को ज़रूरी बिजली को लाभ के लिए बेचा नहीं जा सकता।

बिजली घर-२ की ज़रूरत है, इस हक़ को छीना नहीं जा सकता,
केवल मुनाफ़ा कमाने का इसको साधन बनाया नहीं जा सकता।

जब तक भारत देश से हमारे देखो ग़रीबी नहीं मिटती,
सरकारी सहयोग से ही सबको सस्ती बिजली मिल सकती।

व्यापारी तो केवल व्यापार करने आएँगे 
बिना मुनाफ़े के वो क्या ही बिजली बेच पाएँगे।

जब बिजली बन जाएगी मुनाफ़े का सौदा तो सोचिए 
क्या किसी गरीब के घर कभी रोशनी हो पाएगी ?

ये बिजली है आम जन मानस का हक़ और सबको ज़रूरी है, 
बिना किसी लाभ-हानि के इस पर सरकारी नियंत्रण ज़रूरी है।

माना की कमियाँ हैं अभी कुछ हम सेवा प्रदाताओं में,
तकनीक के प्रयोग से किया जा सकता है सुधार इसमें।

हम बिजली अभियंताओं ने देश हित को क़सम ये खायी है,
करने को देश सेवा हमने न जाने कितनी नौकरियाँ ठुकरायीं हैं।

है योग्यता हममे, हम आज भी अपना हित साध सकते हैं,
हम किसी कोरपोरेट या फिर देश के बाहर भी जा सकते हैं।

मगर देश भक्ति का जज़्बा लिए हम सरकारी सेवाओं में आयें हैं
समाज की भलाई को लेकर हम सब संघर्षों को गले लगाएँ हैं।

निजीकरण बर्दाश्त नहीं ये हमारे और गरीब जनता के साथ धोखा है,
देश की प्रगति में साधक बिजली को हमने ही ग़लत हाथों में जाने से रोका है।

©️~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/१७.०९.२०२०

Thursday, 3 September 2020

चाँद

आज बहुत दिनों बाद चाँद को यूँ आसमान में बालकनी से देखा। पूरा चाँद। चमकीला चाँद।अद्भुत। आकर्षक। बिल्कुल तुम्हारे चेहरे की तरह! लाखों-करोडों में एक। इस चाँद पर तो नज़र ही नहीं टिक रही..........! बिल्कुल वैसे ही जैसे तुम्हारे चेहरे पर मेरी नज़र नहीं टिकती। इतना ख़ूबसूररत और सुर्ख चेहरा कि हज़ार कोशिशों के बाद मैं तुम्हें नहीं देख पाया। फोकस ही नहीं कर पाया। कभी मैं शर्म से पानी -२ हो गया तो कभी तुम खिलखिला दिए। कभी कुछ शरारती ख्यालों ने आंखों को झुकने पर मजबूर कर दिया। तुम्हारे चेहरे और इस चाँद में यही समानता है कि मैं दोनों को ढंग से नहीं देख पाया। चाँद दूर रहता है तो स्पष्ट नहीं दिखता और तुम करीब होते हो तो खुद को संभालना मुश्किल। 😇

कोई मुझसे तुम्हारा चेहरा पूँछ ले तो मेरे लिए बताना मुश्किल। जब भी तुम्हारे चेहरे को याद करने की कोशिश की तो एक रोशनी सी आँखों में कौंध गयी और कुछ पल को अँधेरा सा छा गया। तुमको तो बस तुम्हारी तस्वीरों में ही देख पाया, सामने से देख पाना मेरे लिए मुमकिन नहीं। इसे सौभाग्य समझूँ कि तुम दिल के इतने करीब हो और दुर्भाग्य कि तुम्हारे सजीव चेहरे को देखना सम्भव नहीं। खैर......! जब भी सामने या ख्यालों में होते हो वो पल आनन्दित करने वाला होता है। एक खास एहसास, जिसे शब्दों में बयाँ नहीं कर सकता। अगर तुम मेरा हाथ पकड़ लो तो हो सकता है कि मेरे शरीर का स्पन्दन तुम्हें कुछ समझा सके!💞

खैर, आज की रात फिर तुम मेरे करीब हो। मेरे मन में हो। मेरा बालकनी में जाना और अचानक चाँद पर नज़र पड़ना, मुझे तेरी याद दिला गया और मेरा दिन सफल हो गया। तेरे साथ के एहसास से गुदगुदाते हुए आज की ये रात बहुत ही खूबसूरत होने वाली है! काश....... ये चाँद आज तुम्हारी नज़र में भी आ जाए और तुम्हें मेरी स्थिति का एहसास दिल जाए! इस तरह हम दोनों एक साथ एक ही मनःस्थिति में एक दूसरे को करीब महसूस करते हुए एक-दूजे के ख्यालों में खो जाए...... 💗

कुछ तो खास है आज की रात में! इस चाँद में! इतना सजीव एहसास कि जैसे तुम्हारे साथ ही हूँ........... कुछ माँग ही लेता हूँ! हो सकता है कि इस खास रात में दिल की ख्वाहिश पूरी हो जाए........ काश......💓💖!

~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०२.०९.२०२०

Monday, 31 August 2020

नज़र ..... (पहली नज़र का प्यार vs पहली नज़र से प्यार)

लिंक के ज़रिए दिया गया गीत मुझे एक ख़ास एहसास से रुबरू कराता है। ऐसा एहसास जो आप जी चुके हैं और जितनी बार ये गीत सुनते हैं आप पुनः उसी काल खंड में उसी ख़ास व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति के पास पहुँच जाते हैं। बिल्कुल सजीव हो जाता है वो पुराना वाला माहौल! जिससे आप प्यार करते हों और वह आपकी तरफ एक खास नज़र से देख रहा हो और आपके पता चलते ही वो नज़रें झुक जाएँ! आहा....... सोच कर ही एहसासों की तरंगे हिलोरे मारने लगती हैं। इस ख़ास समय में किसी का हस्तक्षेप पसंद नहीं, इसलिए ये गीत सुकून और एकांत में ही सुना जाता है।

एक दिन मैंने यूँ ही पूँछ लिया कि कोरोना के इस काल में जहाँ सब लोग मास्क लगाए हुए हैं तो क्या ऐसे समय में पहली नज़र वाला प्यार हो सकता है क्या? भिन्न-२ लोगों की भिन्न प्रतिक्रियाएँ! काफ़ी होनहार लोग हैं दिलों के खेल के मामले में! बड़ी उम्र की अपेक्षा छोटी उम्र के लोग़ ज़्यादा अनुभवी निकले! उनके उत्तरों ने तो सोचने पर मजबूर कर दिया और ये भी साबित कर दिया कि चेहरे की उतनी ज़रूरत नहीं, लोग नज़रों से भी काम चला ही लेंगे लेकिन प्यार करना नहीं छोड़ेंगे 😁 । बड़ी उम्र वाले शायद ज़िंदगी में आटा-दाल के भाव पर बहस करने में लगे हैं या प्यार करने के उपरान्त ९९ प्रतिशत केस में मिलने वाले बुरे परिणामों से त्रस्त हो चुके हैं और वो अब प्यार मोहब्बत पर बात ही नहीं करना चाहते😆।

ख़ैर........ प्यार मोहब्बत करते रहिए और लिंक में दिए गए गीत से काम चलाइए। तब तक मैं कोरोना की वैकसीन पता कर लेता हूँ। मास्क सहित चेहरे मुझे हज़म नही होते! चेहरा ज़रूरी है ......! 😜

~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/३१.०८.२०२०

Saturday, 29 August 2020

लापरवाह...!

हर कोई नहीं हो सकता लापरवाह......... ईश्वर प्रदत्त अनेकों मौलिक गुणों में से एक है ये! हज़ार नेमतों में से एक। किसी काम को जिम्मेदारी के साथ न करने वाले व्यक्ति को लापरवाह नहीं कहते। ऐसे व्यक्ति को आलसी कहते हैं। ऐसा व्यक्ति देर-सवेर काम कर ही लेता है। लापरवाह तो वो है जो अपना ही या दूसरे के द्वारा दिया कोई कार्य न करे और उसे कोई अफ़सोस भी न हो। चाहे इसके लिए उसे कितना ही नुकसान उठाना या गाली खाना पड़ जाये। ऐसे व्यक्ति की खाल मोटी होती है और सांसारिक लाज-शर्म आदि से ये व्यक्ति ऊपर उठ चुका होता है। जीवन उद्देश्य रहित तथा रस-हीन होता है। इनकी कोई इज्जत नहीं होती इसलिए बेइज्जती का भी कोई डर नहीं। ये किसी काम को न करने का कोई बहाना भी नहीं ढूढ़ते या यूँ कह लीजिये की कोई इन्हें काम देने की कोशिश भी नहीं करता तो बहाना बनाना भी क्यूँ! गाली भी एक समय के बाद मिलना बंद हो ही जाती है। लापरवाह व्यक्ति को गाली देने में कोई समय भी क्यों बर्बाद करे? जब होना-जाना कुछ नहीं! लापरवाह का शीर्षक आसानी से नहीं मिलता और इसे कमाने में समय और सतत लगन की जरुरत होती है। इसे सीखा नहीं जा सकता, ये इनबिल्ट होता है और ईशर का प्रसाद होता है जो किसी-२ व्यक्ति को ही प्राप्त होता है। बस थोड़ी सी देर लगती है कि दुनिया वाले आपकी लापरवाही की कला को कितनी देर में पहचानते हैं ! एक बार पहचान गए फिर उस लापरवाह व्यक्ति की ऐश......!

मैंने भी लापरवाह बनने की बहुत कोशिश की ! शुरुवात पढ़ाई से की लेकिन हो नहीं पाया। एक स्टेज तक आते-२ शर्म आ ही गयी और इज्जत बचाने के लिए पढ़ाई पूरी कर ली गई। फिर इसी इज्जत को बचाते-२ ग्रेजुएट, पोस्ट-ग्रेजुएट और फिर नौकरी में आ गए। यहाँ पर भी इज्जत बचाने के क्रम में काफी कुछ सीख गए और अब तो दुनिया को नचा दें......! लेकिन दिल में एक अफ़सोस हमेशा रह गया कि लापरवाह नहीं हो पाए😑 और एक निश्चिंत जीवन से वंचित हो गए। और अब तो लापरवाह बनने की कोशिशों से हार मान ली। लापरवाह व्यक्ति निश्चिंत रहता है और उसका दिल शांत रहता है। इसी वजह से कोई रोग-दोष भी नहीं लगता। हम जैसे लोग तो भविष्य की चिंता में ही खोये रहते हैं और आप तो जानते ही हैं कि चिंता चिता के समान होती है। धीरे-२ दुनिया भर के रोग घर कर जाते हैं।  

वैसे तो नहीं चाहता कि कोई मेरे पैर छुए और अक्सर लोगों को मना भी कर देता हूँ। किन्तु ३१ का हो गया हूँ और अब पीढ़ी बदलने के अगले पायदान पर हूँ। १५ -२० वर्ष के बच्चे अंकल भी बुला लेते हैं और प्रणाम भी कर लेते हैं। अच्छा तो नहीं लगता लेकिन कब तक! एक न एक दिन तो बढ़ती उम्र को स्वीकार तो करना ही पड़ेगा। कर भी रहा हूँ। अब कोई अभिवादन करे तो आशीर्वाद भी देना जरुरी है ! बहुत दिन से कुछ बढ़िया आशीर्वाद ढूंढ़ रहा था, सबसे अलग। आज से मस्त आशीर्वाद दूंगा- लापरवाह बनों! ईश्वर तुम्हें लापरवाह बनाएँ! शुरुवात में थोड़ा अजीब तो लगेगा, आशीर्वाद देने वाले और लेने वाले को भी, किन्तु जो समझदार होगा वो समझ जायेगा कि सामने वाले कितनी बड़ी दुआ दे गए। 

अब जिसको बुरा लगेगा वो जबरदस्ती सम्मान देने के चक्कर में न तो अंकल बोलेगा और न ही झुक कर पैर ही छुएगा (माता-पिता लोग पहले ही मना करके रखेंगे कि फलाँ अंकल आएँगे तो अभिवादन मत करना या फिर दूर से नमस्ते कर लेना या सामने ही मत आना।)! ये भी बढ़िया ही होगा। भीड़ में अंकल कहलाने से भी बच जायेंगे और उम्र भी जाहिर नहीं होगी😎। ख़्वामखाह भीड़ में किसी खूबसूरत मोहतरमा के सामने उम्र को लेकर भद्द पिट जाती है😏। मरद जात - इस लालच से कभी ऊपर नहीं उठ पायेगा😍! अब छुपाना क्या ? आप सब भी भाई लोग हैं और जो मोहतरमा ये पढ़ रहीं हो चाहे किसी भी उम्र वर्ग की हों, वो मुस्कुरा दें, बस इतना ही काफी! लिखना सफल! खैर........ !

थोड़ा गौर से सोचियेगा.......! लापरवाह होने के कितने फायदे हैं? जिम्मेदार व्यक्ति होने से जीवन भर दर्द मिलता है, ये जिम्मेदार लोग समझ सकते हैं। लापरवाह होने से कुछ समय तक परेशानी....... उसके बाद सब चंगा! बस एक बार लापरवाह का टैग मिल जाये। ये भी जिम्मेदार व्यक्ति समझ सकता है। अपने अगल बगल लापरवाह लोगों को ऐश करते देख आखिर में सबसे ज्यादा जिम्मेदार लोगों की ही सुलगती है। लापरवाह तो बेचारा कभी जान भी नहीं पाता की उसके पास एक ऐसी नेमत है जिसके लिए लोग तरस रहे हैं......! 😂


~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२९.०८.२०२० 


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