Saturday, 24 July 2021

दावा!

तुम्हारे पेट से दिखती है तेरी रीढ़ की हड्डी, मगर क्या!
इस शहर का दावा है यहाँ कोई भूख से नहीं मरता।

बड़े नासमझ हो तुम तन्हाई की ख्वाहिश रखते हो, मगर किससे!
माँग कर देखो मदद कि यहाँ मौक़े पर एक नहीं मिलता।

एक इच्छा कोई दिल में पाली थी हमने, मगर तुमसे क्या!
होठों पे जो न आए उसे इस जमाने में कोई नहीं सुनता।

दिल की करी थी और बस सच छुपाया था, ज्यादा कुछ नहीं !
जायज-नाजायज में उलझी दुनिया को मैं कैसे सही लगता ।

कुछ अच्छा पाने को, दौड़ है, भीड़ है, छीनने की कला चाहिए!
केवल काम करने से इस दुनिया में मन का नहीं मिलता।

मैं दिन भर व्यस्त रहा लोगों की मदद में बेतरतीब, तो क्या!
खुद की तारीफ करो आनन्द कि तुझ सा अब नहीं मिलता।

©️®️दावा/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२४.०७.२०२१

Friday, 16 July 2021

सवाल....!

तुम बिना बोले बहुत कुछ बोल सकते थे 
मेरे सवालों पर मुस्कुरा तो सकते थे….

चलो माना कि उस पल ख़ामोश रहना मजबूरी थी 
लेकिन बहाना बाद में कोई बना तो सकते थे….

मंज़िले अलग थी हमारी, दूर होना भी ज़रूरी था 
मगर दुबारा लौटकर आ तो सकते थे….

कहते हैं दुनिया बहुत छोटी और तुम बनारस में हो
चाहते अगर तो लखनऊ आ तो सकते थे….

चाहत थी छूने की, अपने बाहों में भर लेने की
तुम लौटकर बस गले मिल तो सकते थे….

एक पल को माना कि ज़िद मेरी जायज़ न थी 
तुम एक हाँ से जायज़ बना तो सकते थे….

तुम बिना बोले बहुत कुछ बोल सकते थे 
मेरे सवालों पर मुस्कुरा तो सकते थे….

©️®️सवाल/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/१६.०७.२०२१

Saturday, 10 July 2021

अधूरी कहानी!

दारू की टेबल पर
जब कोई 
तेरी मोहब्बत में 
पूरी तरह हारकर
तुझे गालियाँ देता है,
बुरा-भला कहता है...
तो मैं बस सुनता हूँ
कुछ भी नहीं बोलता
और चुपचाप
अपने मन में 
कुछ सोचकर 
सर झुकाकर
हल्के से
मुस्कुरा देता हूँ....
शायद तुम्हें 
मुझसे बेहतर 
कोई समझ ही 
नहीं पाया....!
और ये तुम्हारी
बदनसीबी है कि
तुम मुझे 
नहीं समझ पाए.....!

और इस तरह
हमारी कहानी 
अधूरी रह गई.......

©️®️अधूरी कहानी/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/१०.०७.२०२१

Sunday, 4 July 2021

साथ !

मैं तुम्हारे साथ हूँ,
बोलने से सिर्फ
साथ नहीं होता।
साथ होता है
साथ बैठने से
घंटो, बेवजह!
इतना कि 
किसी भी विषय पर
दोनों की
अलग-२ राय
मिलकर एक हो जाय।

और फिर 
दोनों को 
दोनों की
चिंता करने की
"कोशिश"
न करनी पड़े।
बोलने की 
जरूरत न पड़े।
कोई फॉर्मेलिटी
या संकोच न रहे।
सही मायने में
साथ होता है 
साथ बैठने से!

©️®️साथ/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०४.०७.२०२१

Thursday, 1 July 2021

आदत नहीं गई...!

माना कि तुझको पा लिया है हमने मगर,
महफ़िल में तुझे ढूढने की आदत नहीं गई।

सोचा था कि देखने से ही प्यास बुझेगी मगर,
कुछ देर साथ बिताने से भी बेचैनियाँ नहीं गई।

क्या गज़ब का मिराज है तू और तेरा हुस्न,
तेरे बहुत पास पहुँचने से भी ये दूरियाँ नहीं गई।

तेरे साथ की ठंडक के बारे में बहुत सुना है मगर,
दिल में लगी है जो अगन तेरे छूने से भी न गई।

लोग कहते हैं कि मुझको अल्लाह की इबादत कर,
मेरे लबों को सुबह-शाम तेरा नाम लेने की आदत न गई।

हुस्नो की बारात है देखो मेरे चारों तरफ मगर,
दुल्हन से तेरे चेहरे से मेरी नज़र कहीं और न गई।

माना कि तुझको पा लिया है हमने मगर,
महफ़िल में आनन्द तुझे ढूढने की आदत नहीं गई।


©®आदत नहीं गई/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०१.०७.२०२१

Tuesday, 22 June 2021

अरसा

एक अरसा बिता दिया बहुतेरों ने 
ऐ इश्क़ तुझे पल भर जी लेने को।

फिर एक अरसा बिता दिया लोगों ने
इश्क के उस पल को भूल जाने को।

©️®️अरसा/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२२.०६.२०२१

Tuesday, 15 June 2021

ज़िद...

काश….. बच्चों सी ज़िद मैं कर पाता
तुझको जाता देखता तो लिपट जाता!

©️®️ज़िद/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/१५.०६.२०२१