Saturday, 24 July 2021

दावा!

तुम्हारे पेट से दिखती है तेरी रीढ़ की हड्डी, मगर क्या!
इस शहर का दावा है यहाँ कोई भूख से नहीं मरता।

बड़े नासमझ हो तुम तन्हाई की ख्वाहिश रखते हो, मगर किससे!
माँग कर देखो मदद कि यहाँ मौक़े पर एक नहीं मिलता।

एक इच्छा कोई दिल में पाली थी हमने, मगर तुमसे क्या!
होठों पे जो न आए उसे इस जमाने में कोई नहीं सुनता।

दिल की करी थी और बस सच छुपाया था, ज्यादा कुछ नहीं !
जायज-नाजायज में उलझी दुनिया को मैं कैसे सही लगता ।

कुछ अच्छा पाने को, दौड़ है, भीड़ है, छीनने की कला चाहिए!
केवल काम करने से इस दुनिया में मन का नहीं मिलता।

मैं दिन भर व्यस्त रहा लोगों की मदद में बेतरतीब, तो क्या!
खुद की तारीफ करो आनन्द कि तुझ सा अब नहीं मिलता।

©️®️दावा/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२४.०७.२०२१

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