Tuesday, 17 August 2021

तेरा गाँव!

ज़िन्दगी के शेष सफ़र में काश 
एक राह हमें ऐसी भी मिल जाए
हम निकले किसी और काम से 
और रास्ते में तेरा गाँव आ जाए।

लाज शर्म नियम क़ायदे सब छोड़
होकर ढीत द्वार तेरे हम आ जाएँ 
पाकर भनक हमारे आने की बस
तू बेसुध द्वार पार दौड़ी चली आए।

वर्षों की बिछड़न में देखे ख़्वाब सभी
हे प्रेम देव ऐसे भी सजीव हो जाएँ
जिस चेहरे को रोज़ तराशा सपनों में
वो स्वप्निल चेहरा सामने आ जाए।

ललित भावों से होकर हर्षित पुलकित 
हृदय हमारा यूँ प्रफुल्लित हो जाए
मन के तपते शुष्क मरुस्थल पर ज्यूँ 
प्यार की रिमझिम बारिश झर जाए।

©️®️तेरा गाँव/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/१७.०८.२०२१

Saturday, 14 August 2021

दिल और दुनियादारी

कितनी आसानी से लोग यहाँ दूसरों की गलती बता देते हैं,
जो ख्वाहिशों को जी गया, आनन्द बताओ वो गलत कैसे?

जिंदगी सफर है, मंजिल नहीं, सिर्फ आगे बढ़ना क्यूँ? 
यहाँ रुकना भी जायज, चलना भी और पीछे मुड़ना भी!

सफर में साथ हो तो उम्मीदें लग ही जाती है मुसाफिर से,
यहाँ अपना भरोसा नहीं तो दूसरों पर बाजी क्या खेलना।

जीना है अगर सलीके से दुनिया में तो बस दिमाग रखिये,
दिल वाले न माने कोई नियम, तभी तो क़त्ल किये जाते हैं।

जो पकड़े गए चोर, जिसने कुबूल लिया वो मुजरिम लेकिन 
सही बताओ जो बच गए वो क्या मुझसे नज़रें मिला पाएँगे।

नहीं आते समझ में मुझे इस दुनिया के कायदे कोई आनन्द,
दिल को इच्छाओं का कब्रगाह बनाना आखिर कहाँ तक ठीक है?

कितनी आसानी से लोग यहाँ दूसरों की गलती बता देते हैं,
जो ख्वाहिशों को जी गया, आनन्द बताओ वो गलत कैसे?

©️®️दिल और दुनियादारी/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/१४.०८.२०२१

Saturday, 7 August 2021

गोल्ड🥇🇮🇳

लेकर भाला तुम जो दौड़े थे न
भरकर अपनी बाँहों में विद्युत वो हिन्दुस्तानी लाल
तुमने छेदा बादल था न...

माथे से छलकी बूँद पसीना थी न
सवा अरब आँखो की जो प्यास बुझी
खुशियों की तुमने की थी बारिश न...

तुमने जो नापी भाले से वो दूरी ही थी न
एक अदद स्वर्ण पदक लाने को हमारे पाले में 
तुमने तय की वो दूरी थी न...

तुमने जो फेंका वो भाला ही था न
गोल्ड की उम्मीद पर लगा था जो ताला 
तुमने तोड़ा वो ताला था न...

तुमने एक सपना देखा था न
कितनी निराश आँखों मे जो कौंध गयी
वो तेरी स्वर्णिम चमक थी न...

©️®️नीरज चोपड़ा/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०७.०८.२०२१

Sunday, 1 August 2021

नया जीवन

मेरी तो बस यही एक चिंता और सारा ग़म है,
जीवन में कुछ भी करने को समय कितना कम है। 

काम में समय ले लो तो उम्र निकल चली जाती है,
और सही उम्र पर काम करने को समय कितना कम है।

एक बार में कई काम करूँ या एक काम कई बार,
एक बार में एक काम से कहाँ भरता अपना मन है।

दैनिक दिनचर्या से हटकर कुछ भी अलग नहीं होता है,
रोज़ वही घिसी ज़िन्दगी जीने का अब मेरा नहीं मन है।

कुछ नया हासिल करने को थोड़ा ठहर सोचना होगा,
कुछ नया करे बिना देखो कहाँ मिलता नया जीवन है।

©️®️नया जीवन/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०२.०८.२०२१

Friday, 30 July 2021

कुछ नहीं चाहिए...

मन रखने को उन्होंने सोचा कि पूछ लेना चाहिए,
इस तरह से भी हम पर एहसान कर देना चाहिए।

ऐसा नहीं था कि उनका हमारा साथ बस आज का था, 
दिल की बातें थी पुरानी ये क़िस्सा नहीं आज का था।

बहुत ही अच्छे से वाक़िफ़ थे वो हमारे जज़्बातों से,
हम भी बहुत बेफ़िक्र थे हमारे लिए उनके इरादों से।

आज उनसे मिले तो हमने नज़रें थोड़ी झुकी पाईं,
चेहरे पढ़ने की कला से आज मुझे शिकायत आई।

मैंने सोचा कि मौक़े को कुछ यूँ सम्भाल लेते हैं,
कुछ माँग कर इन रिश्तों को क्यूँ ख़राब करते हैं।

मुझसे पूछ लिया उन्होंने कि बोलो आनन्द क्या चाहिए,
हम कह दिये कि आपने पूछ लिया बस और क्या चाहिए।

फिर भी रिश्तों की दुहाई दे कर बोले अमाँ कुछ तो बताइए,
हम भी मुस्कुरा कर बोले कि आप मेरे लायक जो दे पाइए।

©️®️कुछ नहीं चाहिये/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/३०.०७.२०२१

Monday, 26 July 2021

निज़ात

काश कि मेरा सब कुछ छिन जाए
इस तरह भी तो दुख से निज़ात पाया जाए!

हद से ज्यादा हो गईं अब तो शिकायतें
सभी चिट्ठियों को बिन पढ़े जला दिया जाए!

दिल में घाव अब बहुत सारे हो गए हैं
मेरे हक़ीम से अब तो खंजर छीन लिया जाए!

साथ तेरा किसी बोझ से कम नहीं 
क्यों न अब ये बोझ दिल से उतार दिया जाए?

साथ चल नहीं सकते साथ रुक तो सकते हैं
मगर पीछे चलने की आदत अब तो छोड़ दी जाए!

दूर थे तो तब बात कुछ और थी आनन्द 
पास रहकर भी बोलो अब दूर कैसे रहा जाए!

मैं बेचैन करवटें बदलता रहा रात भर 
इस चाहत में कि अब तो मेरा हाल पूँछ लिया जाए!

बहुत कुछ खो दूँगा इस तरह मैं, तो क्या
चलो फिर से एक मुकम्मल शुरुआत की जाए!

काश कि मेरा सब कुछ छिन जाए
इस तरह भी तो दुख से निज़ात पाया जाए!

©️®️निज़ात/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२६.०७.२०२१

Sunday, 25 July 2021

मतलबी

एक गलती हमसे बस यही हुई थी न....
तेरी मुस्कान को मासूम समझ बैठे थे न!

कहाँ पता था कि चेहरे पे चेहरे होते हज़ार न....
एक बहरूपिये को हम अपना दिल दे बैठे थे न!

तुम मतलबी थे हिसाब-किताब के बड़े पक्के थे न....
तुम्हारी बनावटी चाहत को हम प्यार समझ बैठे थे न!

भूल गए थे तुम कि कभी-२ बारिश भी होती है न....
रंगे सियार का रंग कच्चा, देखो उतरता भी तो है न!

एक सीख मिली कि दुनिया बस मतलब की है न....
क्या करते कि इस दुनिया से परे तुम भी तो नहीं न!

©️®️मतलबी/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२५.०७.२०२१