काश कि मेरा सब कुछ छिन जाए
इस तरह भी तो दुख से निज़ात पाया जाए!
हद से ज्यादा हो गईं अब तो शिकायतें
सभी चिट्ठियों को बिन पढ़े जला दिया जाए!
दिल में घाव अब बहुत सारे हो गए हैं
मेरे हक़ीम से अब तो खंजर छीन लिया जाए!
साथ तेरा किसी बोझ से कम नहीं
क्यों न अब ये बोझ दिल से उतार दिया जाए?
साथ चल नहीं सकते साथ रुक तो सकते हैं
मगर पीछे चलने की आदत अब तो छोड़ दी जाए!
दूर थे तो तब बात कुछ और थी आनन्द
पास रहकर भी बोलो अब दूर कैसे रहा जाए!
मैं बेचैन करवटें बदलता रहा रात भर
इस चाहत में कि अब तो मेरा हाल पूँछ लिया जाए!
बहुत कुछ खो दूँगा इस तरह मैं, तो क्या
चलो फिर से एक मुकम्मल शुरुआत की जाए!
काश कि मेरा सब कुछ छिन जाए
इस तरह भी तो दुख से निज़ात पाया जाए!
©️®️निज़ात/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२६.०७.२०२१
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