Tuesday 12 February 2013

Happy Hug Day "KHUSHI" :)

देखा  सुना और बहुत जाना है तुझको,
हर पल ख्यालों में मैंने बुना है तुझको,
बस कर कि अब बहुत हुयीं दूरियां तुझसे,
और नहीं संभलता सब्र का ये बांध मुझसे,
पा लूँ ! छू लूँ ! और कस लूँ तुझे अपनी इन बाँहों में,
तेरा सर हो मेरे सीने पर और तेरी खुशबू मेरी सांसों में,
धडकन से धडकन की हो बातें और लब रहे खामोश,
खो जाएँ एक दूजे में और  न रहे सही गलत का  होश,
आ लग जा गले कुछ इस कदर कि न हो इस दुनिया की फिक्र,
रहे न वक़्त का होश और न ही हो कोई ज़िक्र-ए-हिज्र ।




Happy Hug Day KHUSHI28.05.2013    

:)


Saturday 2 February 2013

हम जानते हैं !


तुम क्या जानो कि तुम चीज क्या हो,
तुम से बेहतर तुम्हे हम जानते हैं !!!!!!!!!!

लाख तुमने खुद को आइने में देखा है,
मगर तुम्हे तुमसे ज्यादा हमने देखा है,
ये सजने-सँवरने की जरुरत नहीं तुमको,
कभी मेरी आँखों से देखो तो खुद को,
तुम बहुत खुबसूरत हो ये हम जानते हैं।
तुम से बेहतर तुम्हे हम जानते हैं !!!!!!!!!!

Friday 1 February 2013

गुटखा धर्म

 कुछ तीन या चार बज रहे होंगे! ये अगस्त की साँझ थी ।  मैं बारा बिरवा (आलमबाग नहरिया) से थोडा सा आगे पिकादिली होटल वाले तिराहे पर, जो कि लखनऊ में है, पर उन्नाव की बस के लिए इन्तेजार कर रहा था। कई बसें निकल चुकी थी पर कोई रुकने का नाम न ले रहीं थी । भीड़ और मोटर गाड़ियों के कोलाहल में एक जगह खड़ा होना मुश्किल हो रहा था । बड़ी झुंझलाहट हो रही थी कि न जाने बस यहाँ रुकेगी भी या नहीं । मैंने मन बना लिया कि चलो आलमबाग वापस चलते हैं और वहीँ से कोई बस पकड़ लेंगें ।


                  तभी सामने से एक बहराइच डिपो की बस आती हुयी दिखी। मैंने बड़े अनमने अंदाज़ से बस को हाथ दिखाया और मेरी किस्मत...... कि, बस रुक गयी। मैं लपक कर बस में चढ़ा तो बस की हालत देखकर लगा कि  क्यूँ रुकी ये बस ? और क्यूँ चढ़ा मैं इसमें ! पूरी बस यूँ हिल रही थी की अभी सारे पहिये निकल जायेंगे और सब का सत्यानाश हो जायेगा । बस के खड़ -खड़ाने की आवाज इतनी तेज थी कि आप अपने फ़ोन पर म्युजिक  का लुत्फ़ भी नहीं उठा सकते थे जो  कि आज कल की यात्राओं का एक अहम् हिस्सा होता है । मैं गुस्से में कंडक्टर से दो सीट पीछे वाली सीट पर बैठ गया | बस में मुझको लेकर गिनती के 5 लोग ही थे, जिनमे ड्राईवर और कंडक्टर भी शामिल थे। जहाँ तक मुझे याद है कि एक व्यक्ति आगे ड्राईवर के पास स्टाफ सीट पर बैठा था और एक ड्राईवर कंडक्टर की सीट की बगल वाली पंक्ति वाली सीट पर बैठा होगा । देखने से ऐसा लग रहा था की सभी एक दूसरे से अंजान हैं और इस सफ़र के अलावा उन सबमे कोई और रिश्ता नहीं है । 

            मैंने चिढ़े हुए अंदाज में धीरे से कंडक्टर की तरफ पैसे बढाकर टिकिट ले लिया और फिर खिड़की से रास्तों को निहारने लगा । कुछ पाँच मिनट बाद कंडक्टर के बगल वाली सीट की पंक्ति में बैठे हुए आदमी ने कंडक्टर की तरफ हाथ बढाया और थोड़े से संकोच के साथ नजरों से एक प्रश्न किया !  उसके हाथ में कुछ था, कंडक्टर ने एक बारगी तो उस आदमी को ध्यान से देखा और कुछ सोचकर मुस्कराया और अगले ही पल उसने उस व्यक्ति के हाथ से उस चीज को उठाकर धीरे से अपने होंठों और दांतों के बीच दबा लिया । इसके बाद ही उस व्यक्ति ने भी बाकी  बची हुयी चीज को बिलकुल उसी अंदाज में  मुंह में रख लिया । आप लोग तो जान ही गये होंगे कि ये  चीज कुछ और नहीं केवल खैनी थी जिसे वो व्यक्ति घंटो से अपनी हथेली पर मसल रहा था । 


             तभी मेरे दिमाग में एक बात कौंधी कि हम सभी जानते हैं कि सफ़र में अंजान व्यक्ति से कुछ नहीं लेना चाहिए और अपने बच्चों को भी यही सिखाते  हैं । फिर भी दोनों ने बिना किसी डर के अपने जान -माल की परवाह न करते हुए नशे की इस चीज को आसानी से स्वीकार कर लिया ।  दूसरी बात ये कि उन दोनों व्यक्तियों में दोनों एक दूसरे  के बारे में कुछ भी न जानते थे और न कि  वो किस जाति, धर्म, संप्रदाय  के हैं, फिर भी एक ने हाथ बढाया और दूसरे  ने आसानी से स्वीकार कर लिया । यहाँ तो ऊंच-नीच , छुआ-छूत की बात भी नहीं आयीं और न कि वो किस वर्ग से सम्बन्ध रखता है- आरक्षित या अनारक्षित,जिसको लेकर अज कल हमारे समाज में काफी बहस हो रही है । भेद-भाव और सामाजिक सुरक्षा का प्रश्न तो यहाँ आया ही नहीं । मैं थोडा हतप्रभ हुआ और खुश भी कि मुझे हमारे समाज में फैले उपरोक्त वर्णित सभी बुराइयों से निपटने की एक कुंजी मिल गयी थी। जो विचार मेरे दिमाग में आया, अगर उसे एक मत से अपना लिया जाये तो हमारा समाज उत्कृष्टता के एक ऐसे शिखर पर पहुँच जायेगा, जहाँ पहुचने की अभी हम केवल कल्पना करते हैं ।

               आखिर नशे की इस चीज गुटखा ने मुझे एक ऐसे धर्म के बारे में बताया की जिसका पालन करें तो हमारा समाज एक खुशहाल, सौहाद्र पूर्ण जीवन व्यतीत कर सकता है और प्रगति के पथ पर सबके साथ हाथ से हाथ मिलकर आगे बढ़ सकता है। सिर्फ हमें इस गुटखे से होने वाले नुक्सान से बचना होगा  और इसके खाने से पहले होने वाले व्यवहार की अच्छाइयों को ग्रहण करना होगा। तो आइये हम सब एक सुर में कहते हैं की हम सबका एक ही धर्म - गुटखा धर्म । 

इस बात पर मुझे स्वर्गीय हरिवंशराय  बच्चन की उनकी सुप्रसिद्ध कविता- मधुशाला की एक पंक्ति याद आती है कि-
मंदिर मस्जिद बैर कराते, मेल कराती मधुशाला.............. J

Tuesday 22 January 2013

ख़ता !

क्या सही है और क्या गलत ये अब नहीं सोचना…..
इस गुणा भाग में अगर उम्र गंवाई तो ख़ता होगी !!!!!!

दिल की इस गगरी को मैंने छलकने से रोका है,
आँखों में बसी गंगा को मैंने बहने से रोका है,
सब्र के इस बांध को अब तो तोड़ना  होगा,
दिल की इस कहानी को अब तो बयां करना ही होगा,
ये जो चाहत है मुझमे तेरे लिए कभी ख़त्म न होगी………..
ये तो हक है तेरा और तुझको न बताऊँ तो ख़ता होगी !!!!!!!!

हर बार एक नया जख्म लेकर आती है तेरी याद,
ख़त्म नहीं होती अब इन जख्मों की मीयाद,
अजब है कि हम खुद इनको भरने नहीं देते हैं
ये जख्म जितने गहरे हों, उतना ही सुकून देतें हैं ,
मेरे हजार जख्मों की तू ही, सिर्फ तू ही, है एक दवा…………
दवा को दर्द से रखा अगर दूर तो ख़ता होगी !!!!!!

तू इतना शांत कैसे कि इधर उठ रहे लाखों तूफान हैं,
मेरी हालत को न समझे क्या वो इतने नादाँ हैं !
ऐ ज़ालिम इतना भोला मत बन कि फर्क तो कुछ तुझे भी जरुर पड़ता होगा,
गर मुझे नींद न आये इधर तो उधर करवटे तू भी बदलता होगा !
चल हट और छोड़ दे ये जिद कि………..
दो दिल प्यार करें और प्यार की बात न करें तो ख़ता होगी !!!!!

Monday 22 October 2012

तो क्या बात हो !


है भीड़ बहुत !
हैं हमदर्द बहुत !
हर दर्द सहने को ,
ये दिल है मजबूत बहुत !
किन्तु दिल के इस दर्द की दवा बनकर ,
अगर तुम आ जाओ…………….
तो क्या बात हो !

है ये  सफ़र लम्बा !
और मुझको चलना बहुत !
पूरे करने हैं मुझे,
अभी ख्वाब बहुत !
जिंदगी की इस राह पर बनके हमसफ़र,
अगर तुम आ जाओ…………….
तो क्या बात हो !

हैं जिंदगी व्यस्त बहुत !
पूरे करने हैं काम बहुत !
चाहता हूँ मैं सोना क्यूँकि,
थक गया हूँ मैं बहुत!
बनकर ख्वाब नींद में मेरे,
अगर तुम आ जाओ…………….
तो क्या बात हो !

है तू दूर बहुत !
और याद आती है बहुत !
कहीं तुझे खो न दूँ,
मैं डरता हूँ बहुत !
बनकर रोशनी मेरे इस अंधियारे जीवन में ,
अगर तुम आ जाओ…………….
तो क्या बात हो !

हैं दुनिया में चेहरे बहुत !
और सभी खुबसूरत बहुत !
मगर तेरे आगे मुझको ,
लगते सभी बेकार बहुत !
लेकर अपने चेहरे पर वही प्यारी सी मुस्कान,
अगर तुम आ जाओ…………….
तो क्या बात हो !

हूँ मैं बेचैन बहुत !
हैं दिल में प्रश्न बहुत !
उठ रहे हैं मुझमें,
विचारों के तूफ़ान बहुत !
बन के ठहराव मेरे मन के मानसरोवर में ,
अगर तुम आ जाओ…………….
तो क्या बात हो !

है लिखने को बहुत !
और कहने को भी बहुत !
बयाँ करने को मेरी कहानी ,
मेरे पास नहीं अल्फ़ाज बहुत !
इस अनकही कहानी को सुनने ,
अगर तुम आ जाओ…………….
तो क्या बात हो !

अगर तुम आ जाओ…………….
तो क्या बात हो !

Friday 14 September 2012

आज फिर तेरी याद आई........

आज फिर तेरी याद आई........

आसमाँ में इन बादलों ने न जाने कैसा रूप बनाया है ,
ठंडी हवाओं ने भी कोई षड़यंत्र रचाया है ,
बारिश की इन बूंदों ने न जाने किस तरह छुवा मुझको ,
कि तेरी याद अज कुछ ज्यादा ही आई |

आज फिर तेरी याद आई........

पूरा दिन दुनिया की दुनियादारी में गुजरा ,
नहीं पता कब बीता ये दिन और कहाँ होगा बसेरा ,
जब इस व्यस्त समय से मिला थोडा सा समय ,
लो हो गयी शाम और फिर तेरी याद आई |

आज फिर तेरी याद आई.......

यूँ तो तुझे हम भूले न थे कभी ,
किसी कोने में नहीं पूरे दिल में हो अभी ,
है दूर बहुत तू मगर दिल के नजदीक है ,
कैसे बताऊँ तुझे कि फिर तेरी याद आई |

आज फिर तेरी याद आई.......

डराती हैं मुझे ये घड़ियों का टिक-टिकाना ,
नहीं पसंद मुझे तेरे बिना एक पल बिताना ,
लाख कोशिशों के बाद भी खुद को न रोक पाया ,
आ गया मुझको रोना जब तेरी याद आई |

आज फिर तेरी याद आई........

Wednesday 5 September 2012

यूँ ही ...................


तुझे याद करते वक़्त मैं,
थोडा खामोश रहता हूँ |
यूँ तो तू
है दूर बहुत मुझसे,
पर उस वक़्त तू मेरे पास होता है ||