Thursday 21 July 2022

ऐसा तो कभी हुवा ही नहीं...

ऐसा तो कभी हुवा ही नहीं 
लोग मिलने आए और हमने उन्हें देखा ही नहीं 
तुम जो आए किस तरह सामने 
महसूस किया हमने मगर नज़रें उठी ही नहीं!

दिल ने चाहा कि देख लें 
कोशिश भी की मगर खुद पर ज़ोर चला ही नहीं!
गलती से जो नज़र टकरा गई 
दिल की धड़कनों फिर पर चला कोई ज़ोर नहीं!

तुम्हारी वो मद्धम सी मुस्कान
मेरी चोर नज़रों से फिर तो रहा गया ही नहीं!
भरपूर तुम्हें देख लेने की चाहत
क्या बताऊँ ऐसी कोई चाहत पहले कभी हुई ही नहीं।

बेक़ाबू उस पल में हमने 
तुम्हें रोकने के बहाने ढूँढे पर कुछ मिला ही नहीं 
पल भर में इतना कुछ घट गया 
दिल को सम्भालूँ या दिमाग़ कुछ सूझा ही नहीं!

देखो तुम संभालो अपना आकर्षण
लोगों को इतने अधिक गुरुत्वाकर्षण की आदत नहीं!
लड़खड़ाना बहुत मुमकिन है उसका 
इतने सधे कदमों से चलना किसी ने सीखा नहीं!

गुस्ताखी जो कोई कर दे 
उसे माफ़ कर देना और तुम कुछ कहना नहीं!
तुम और तुम्हारा चुम्बकीय प्रभाव 
इस प्रभाव से बचने का किसी के पास तरीका नहीं!

तुम तो चले गए मगर 
शेष जो छोड़ गए वो असर कम होता ही नहीं!
तूफ़ान तो थम गया मगर 
जो बिखरा वो समेटने से भी सिमटता नहीं!

ऐसा तो कभी हुवा ही नहीं 
लोग मिलने आए और हमने उन्हें देखा ही नहीं 
तुम जो आए किस तरह सामने 
महसूस किया हमने मगर नज़रें उठी ही नहीं!

©®ऐसा तो कभी/अनुनाद/आनन्द/२१.०७.२०२२

Sunday 3 July 2022

पैसा

लोग कहते हैं

कि

पैसा चलता है…

मगर

सच तो ये है

कि

लोग चलते हैं…

पैसा लेकर !


पैसा लेकर

मस्तिष्क में,

चेहरे पर,

व्यवहार में,

और 

अन्त में 

जेब में।

©️®️पैसा/अनुनाद/आनन्द/०३.०७.२०२२



काशी

कुछ बेहद ही अच्छी यादें हैं जो 

कभी संग मेरे बनारस में घटी हैं !

मैं अब काशी में नहीं रहता लेकिन 

सुनो! पूरी काशी मुझमें रहती है।


बीएचयू कैम्पस, लिंबड़ी कॉर्नर और अस्सी

समय बीता मेरा वीटी और सेंट्रल लाइब्रेरी, 

सी वी रमन, मोर्वी और लिंबड़ी ख़ूबसूरत

पर खाना ग़ज़ब जहाँ वो धनराज गिरी।


वो मशीन लैब वो ढेर सारे प्रैक्टिकल

हाई वोल्ट सर्किट के बीच मज़ाक़ के पल 

पढ़ने लिखने का मज़ा था या दोस्तों के संग का 

सब भूल गए पर भुला पाते नहीं वो पल!


नशा काशी का था या गोदौलिया की ठंडाई का 

ठंड दिल को जो मिली वो गंगा पार की रेत का

गंगा आरती के अनुनाद से जो उपजा मुझमें आनन्द

कृपा भोले बाबा की तो आशीर्वाद संकट मोचन का।


कुछ बेहद ही अच्छी यादें हैं जो 

कभी संग मेरे बनारस में घटी हैं !

मैं अब काशी में नहीं रहता लेकिन 

सुनो! पूरी काशी मुझमें रहती है।


©️®️काशी/अनुनाद/आनन्द/०३.०७.२०२२






Monday 27 June 2022

कुछ यूं तेरा असर ...

पथरीली सड़क पर जैसे हरी दूब

उमसती गर्मी में चल जाए हवा खूब 

तपती दुपहरी में बादल का आना

यूँ ही तो होता है तेरा मुस्कुराना।


गेहूँ की बालियों की लहलहाती खनकन 

चिलचिलाती धूप में जैसे चमकते स्वर्ण 

इस चकाचौंध में कहीं छाँव मिल जाना 

हाँ यूँ ही तो होता है तेरा खिलखिलाना।


वो बगीचा, नदी, ताल-तलैया घूमना

वो यारों के संग ठहाकों का दौर होना 

इन सब में भी दिल का कहीं खो जाना 

कुछ यूँ भी तुम जानते हो दिल चोरी करना।


माथे पर पसीने का छलक जाना 

गर्मी से कपड़ों का तर हो जाना

लगे कि ठंडी पुर्वी बयार का आना 

यूँ ही होता है तेरा बग़ल से गुज़र जाना।


इधर-उधर की बातों में प्यार छुपा होना 

बड़े धैर्य से टक-टकी लगा तुझे देखना 

इरादे समझ कर वो शर्म से पानी-२ होना 

कुछ यूँ भी तो दिल के कभी राज खोलना।


प्यास से सूखे गले को पानी मिल जाना 

तपते बदन को ठंडक मिल जाना 

बंजर धरती पर बारिश का गिरना 

यूँ ही तो होता है तेरा मुझको छूना।


वो काली साड़ी में तेरा मिलने आना

मेरे पसंदीदा रंग का नीले से काला होना 

घूरना इस कदर कि दिखे मेरा बेसब्र होना 

कुछ यूँ भी तो होता है तेरा काला जादू-टोना।


सुराही सी गर्दन पर पल्लू लटकना 

खुली बाँहें और बल खा कर चलना 

पल में ज़मीन से सातवें आसमाँ जाना

यूँ ही तो होता है तेरा मेरे गले लग जाना।


जीवन की उलझनों में परेशान होना

भरे उजाले में भी एक अंधेरे का होना 

फिर एक रोशनी की किरण दिखना 

यूँ ही तो होता है तेरा कंधे पे सिर रखना।


पथरीली सड़क पर जैसे हरी दूब

उमसती गर्मी में चल जाए हवा खूब 

तपती दुपहरी में बादल का आना

यूँ ही तो होता है तेरा मुस्कुराना।

©®कुछ यूं तेरा असर/अनुनाद/आनन्द/२७.०६.२०२२


Wednesday 22 June 2022

जादू-टोना

कौन कहता है ये जादू-टोने नहीं होते

ग़ज़ब अजूबों के अजब तजुर्बे नहीं होते 

सब कुछ सीखा यहाँ हमने हंसते-रोते

और फिर देखो ये जादू नहीं तो और क्या

एक चेहरे को देखा और सब कुछ हम भूल गए……


बचपन से थे अच्छे से पढ़ते-लिखते 

लोग बाग़ तारीफ़ करते नहीं थकते

सारे समीकरण ज़ुबान पर थे बने रहते

चेहरे पर उनकी ज़ुल्फ़ों से जो लिखी इबारतें

इक बार जो पढ़ी तो सारे किताबी समीकरण भूल गए…..


गुणा-गणित में हम मिनट नहीं लगाते

जोड़-घटाने में हम सबको पीछे रखते 

चलता-फिरता बही-खाता सबका हिसाब रखते

होठों की हल्की मुस्कान और उनके पीछे चमकीले दाँत

और फिर उनकी चकाचौंध में हम सारी दुनियादारी भूल गए…..


बेहतरीन चीजों का हम शौक़ थे रखते 

पसंद की चीजों को संजोकर थे रखते

अपनी हर चीज को दिल से लगा कर रखते

बस उनके जीवन में आ भर जाने से देखो 

एक उनको अपनाकर हम सब कुछ अपना भूल गए….


कौन कहता है ये जादू-टोने नहीं होते

ग़ज़ब अजूबों के अजब तजुर्बे नहीं होते 

सब कुछ सीखा यहाँ हमने हंसते-रोते

और फिर देखो ये जादू नहीं तो और क्या

एक चेहरे को देखा और सब कुछ हम भूल गए……


©️®️जादू/अनुनाद/आनन्द/२२.०६.२०२२




Saturday 11 June 2022

रात और बात

और क्या चाहिए तुमसे करने को बात ,
दिल में तेरी याद और एक तनहा रात ।

हवा भी सरसराए तो मुझमें खिल उठते जज़्बात,
बग़ल तेरे होने के एहसास से मुकम्मल होती रात ।

इक भीड़ सी है मुझमें जो न रहने दे मुझे शान्त ,
यादों के कारवाँ संग मैं बेहद अकेला इस रात ।

ज़िन्दगी के सफ़र में तुम कहीं मैं कहीं, न होती बात,
सिर्फ़ यादों को साथ लेकर बोलो कैसे बीते रात ।

और क्या चाहिए तुमसे करने को बात ,
दिल में तेरी याद और एक तनहा रात ।

©️®️रात/अनुनाद/आनन्द/११.०६.२०२२


Thursday 2 June 2022

मर्ज़ और इलाज

वो बस हमसे हमारा मर्ज़ पूछते रहे…

काश ! वो हमारा इलाज पूछ लेते ।


लोग बाग कुछ न कुछ लेकर आ रहे…

काश ! वो बस ख़ाली हाथ चले आते ।


लोग हमारी बेहतरी की दुवाएँ माँग रहे…

काश ! वो बस दुवा में हमें माँग लेते ।


वो बस हमसे हमारा मर्ज़ पूछते रहे…

काश ! वो हमारा इलाज पूछ लेते ।


©️®️मर्ज़ और इलाज/अनुनाद/आनन्द/०२.०६ .२०२२