अच्छा हुआ इस कोरोना ने शादियों में बारातियों की संख्या कम कर दी! हुँह.......😷। आज कल भी कोई बारात होती थी! एक रात की शादी, कुछ टाइम की बारात और कुछ घंटों के बाराती। केवल पेट भरने या फिर चेहरा दिखाने आते हैं लोग। निमंत्रण लिखाने वाले उससे भी कम! कुछ अति जहरीले निकले तो नाच कूदकर एक कोने में जाकर अपना जहर उगले और निकले। लड़की को किराए की गाड़ी से घर लाना ही था तो इससे अच्छा लड़की खुद ऊबर बुक करके लड़के के यहां चली आती....... हुँह...! अच्छा हुआ कोरोना महाराज ने अपनी कृपा कर दी।
बारात तो हमने की है...... बचपन में और जवानी के उदय काल में भी। सुबह से तैयारी होती थी। कैसे नया वाला शर्ट जो साल भर पहले लिया था उसे निकालने की जल्दी होती थी। देर नही होनी चाहिए। सारी तैयारी कर जाकर खड़े हो गए..... शादी वाले घर पर नहीं! खड़ा वहां होता था जहाँ गाड़ियाँ खड़ी होती थी। सीट भी तो छेकानी थी। सूमो में बीच वाली सीट की खिड़की पकड़ कर बैठे। लेकिन बारात निकलने तक सारी एडजस्टमेंट होने के बाद बैठने को मिलता था तो ट्रेक्टर की ट्राली में । सारे समान की रखवाली का जिम्मा अलग । घंटों की मेहनत यूँ बर्बाद होती थी और मन में गुस्से का ज्वार सातवें आसमान पर अलग। तब तक गालियाँ नही सीखीं थी वरना दो चार बोलकर भड़ास निकाल लिया जाता। लेकिन ट्राली का मजा अलग। अक्सर ट्रॉली पर बैंड बाजे वाले बैठते थे । बस रास्ते भर मौज, गाना -बजाना और बगल से गुजरने वालों को दूर तक ताकना। कोई नया जोड़ा साईकल पर बैठकर निकलता हुआ दिख जाए तो बाँछें खिल जाती थी और नजरें उन्हें तब तक ताकती थी जब तक वो क्षितिज में विलीन न हो जाएं। इसी बीच नचनिया महोदय रास्ते में ट्रेक्टर रूकवाकर नाचने के लिए अपना ईंधन भी ले लिए और धीरे से फुल हो गए। हम भी तिरछे देखकर मुस्कुरा दिए।
बारात पहुंची । गाँव के बाहर रुकाया गया। कोई खेत या प्राथमिक विद्यालय में शामियाना लगा और एक कोने में खटिया और गद्दों का ढेर लगा हुआ। सब फटाफट अपना अपना कब्जा किये और बिस्तर छेंका लिए। दूल्हे की खटिया अलग और फूफा जी का मुआयना चालू। चद्दर तो गंदी है। ये भी कोई बात हुई। हमारा लड़का यहां बैठेगा। कतई नहीं। बवाल चालू। लड़की वाले शांत खड़े। तब तक गाँव के स्वघोषित कुछ सम्माननीय लोग पहुँच कर मामला शांत कराए। फिलहाल चद्दर बदल गई। लेकिन हमको का मतलब। हम तो पानी पिलाने वाले के बगल खड़े व्यवहार बनाने की कोशिश में..... ई भी कोई बात हुई ! एक चद्दर के लिए बवाल। बड़का फूफा बने हैं। पानी वाला भी हाँ में सिर हिलाया। बस क्या ..... धीरे से पटा कर मिठाई का दू डिब्बा अंदर। अब कोई भी काम हो तो पानी वाले को ढूंढ लिए और फिर पूरा वी आई पी वाला ट्रीटमेंट लिए। अगल बगल वालों को जलाने का जो मजा वो और कहाँ।
बारात द्वार-चार को बढ़ी। नाचने वालों में लोटने की होड़ और बाजे वाले से तरीके तरीके के गाने की माँग, लेकिन उस पर कोई असर नहीं। उसने जो एक लय पकड़ी तो आखिरी तक उसी पर डटा रहा। कई जीजा फूफा ताव दिखाए और चले गए मगर बाजे वाला टस से मस नही हुआ। हम नाचने वालो से सुरक्षित दूरी बनाकर बारात के सबसे आगे। द्वार पर सबसे पहले पहुँचे और व्यवस्था का पूरा ब्यौरा लिया गया। इसी बीच दुल्हन की सहेलियों, भाभियों और न जाने किनसे किनसे मुस्कान का आदान प्रदान हो गया। कुछ ही देर में हम बाराती कम घराती ज्यादा। दुल्हन पक्ष को कुछ भी संदेश दूल्हा पक्ष को भेजना हो तो हमे ही ढूंढा जाए। फिर क्या घर भीतर तक इंट्री हो गई।
द्वार-चार हुआ। खाने पीने की तैयारी। दुल्हन पक्ष की गाँव की औरतें गारी गाने को तैयार। दूल्हा के मामा, फूफा, चाचा, बाबा का नाम चाहिए। कौन बताएगा। अब यहाँ पर भी हम आगे। इतनी देर से मेहनत जो कर रहे थे। फिर क्या हम सब नाम बता दिए.....लेकिन दूल्हा के रिश्तेदार का नहीं, दुल्हन के रिश्तेदारों का 😂😋। खैर गारी शुरू हुआ और फिर जोर की हँसवाई हुई। दुल्हन पक्ष से कौनो मरद दौड़ता हुआ आया.... ई का अपने ही घर वालों को गरियाये दे रही हो। औरतें संन्न ....! ये का हो गया। नज़रें हमको ढूढने लगी । हम भी मौका देखकर दाएँ बाएँ हो गए। नाश्ता तो हम औकात से ज्यादा पेल चुके थे सो खाने की भूख थी नहीं। इधर शादी की शुरुवात होने लगी और उधर हम परदहिया सिनेमा खातिर सबसे आगे वाली लाइन में डटे मिले। सुबह चार बजे के आस पास भूख लगी। क्या किया जाए। पता चला कि अभी शादी चल रही है। तो उधर चल दिये और शादी के बाद वाली पंगत में बैठकर भूख मिटाई और निकल लिए सोने।
सुबह हुआ। नित्य कर्म से निपटकर पूरे गांव का एक चक्कर और फिर लड़की वालों के घर पहुंचकर पंचायत चालू। घर का सारा भेद लिया गया। कौन साली है, कौन मौसी और कौन मामी,,,, सब पता किया गया। मजाक वाले रिश्तों को टॉप पर रख गया। जूता कौन चुराएगा पता किया गया। आखिर में चलते चलते दूल्हे का खास जो बनना है। भाई.... सुबह का नाश्ता हुआ और फिर अँचर धराई का कार्यक्रम चालू। हम भी बिल्कुल तैयार, जूता के पास। कसम से हाथ तो पकड़ ही लेंगें। जूता जाए तो जाए। इसी बीच दूल्हा और दुल्हन की भाभी के बीच हंसी मजाक चालू हो गया। दूल्हा जी अंचरा कस के पकड़े थे और भाभी जी उनकी नाक। सब तफरी लेने में लगे थे और हम भी। बस यहीं हमारा कट गया। सब हंसी मजाक निपटने के बाद पलटकर देखे तो जूता गायब। अब काटो तो खून नहीं। सारे इरादों पर पानी जो फिर चुका था। फिर हमने नज़रें उठा कर इधर-उधर नहीं देखा। सारी खिसियाहट समेटकर धीरे से ट्राली की ओर। अब बारात में हमारे लिए कुछ नही बचा था 😑।
किस्मत अच्छी थी। खाने पीने का सारा सामान ट्राली पर रखाया। हम भी खुश। रास्ते के नाश्ते के इंतजाम हो गया। अब ट्राली पर बैठने का मलाल न रहा 😂। बहुत दिन से ऐसी बारात मिस करता था। आधुनिक बारातों में जाने की इच्छा तो नही होती थी मगर समाज की खातिर जाना पड़ता था। भला हो कोरोना का जो इसने बाराती की संख्या 50 तक सीमित कर दी। बुलाएगा तो हमें वैसे भी कोई नहीं लेकिन अगर गलती से पूँछ लिया तो कोरोना का बहाना तो है ही। नहीं जाएँगे। हा हा हा ......!
~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२५.०६.२०२०
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