Monday, 8 June 2020

रिक्त ...!

रिक्त हूँ
व्याकुल भी 
कुछ पाना भी है
है सब हासिल भी।

शब्द ढेरों हैं
हैं भाव भी
लयबद्ध करने को 
रात अकेली भी।

समझ नही आता कैसे
और कहां से शुरू करूँ
लिखूँ क्या अब 
सोचती कलम भी।

पाने की बात क्या करना
मुश्किल है अब सोचना भी
तुझको बाँधना है कठिन मेरे लिए 
अब कविताओं में भी।

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