कोई ये कहे कि उसके अन्दर लालच नही है तो गलत कहता है। कभी-२ ये लालच बड़ा होता है और कभी छोटी-२ चीजों का लालच। बचपन से शुरू ये आदत जीवन भर साथ देती है, बस रूप बदलता रहता है। मेरी माने तो अगर लालच न रहे तो जीवन का कोई पर्याय नही है। साधु-सन्त, सन्यासी वगैरह भी ईश्वर को पाने के लालच में ही दुनिया की मोह-माया का त्याग करते हैं।
मेरे छोटे बेटे। डेढ़ साल के । खाने की कोई चीज लेकर बैठो तो खाएँगे बाद में, पहले बड़े वाले बेटे को धक्का मार-२ कर दूर करेंगें। पता नहीं ये प्रोग्राम कैसे डेवलप हो गया। इसकी कोडिंग कब हो गई हमसे। हम तो इतने होनहार न थे। खैर..... अभी तो इस हरकत पर प्यार आता है। इससे साबित होता है कि लालच सीखा नहीं जा सकता, ये इनबिल्ट होता है। बड़े बेटे में नही है इस तरह के लालच की अतिरेकता और न वो छोटे को देखकर सीख पाया।
मेरे जीवन में लालच का रूप अलग है। नई किताब का लालच, उसे सूँघने का लालच। एक अच्छे पेन का लालच। एक अच्छी और खूबसूरत संगत का लालच। वीडियो गेम का लालच। नए गैजेट का लालच। टेक्नोलॉजी का लालच। एकान्त में बैठने का लालच। कई और हैं........ सब नही बता सकता! अब इन सभी लालच में कुछ खरीदे जा सकते हैं और कुछ आपकी किस्मत से पूरे होते हैं। मेरे पूरे भी हुए। लेकिन मजा तो तब हो जब आपका ये लालच आप खुद न पूरा करें , कोई और गिफ्ट कर दे। आहा.......! आपका लालच अगर आपको मुफ्त में मिल जाये तो इससे बड़ा सौभाग्य कोई नही, इस खुशी का कोई मोल नहीं और इस लालच को पूरा करने वाला ईश्वर से कम नहीं। मगर अफसोस .... इस जीवन में कुछ भी मुफ्त नही मिलता। आज या कल कीमत अदा करनी पड़ती है। करनी पड़े ... हमें क्या... फिलहाल मौके पर जो खुशी मिलती है उसे क्यूँ छोड़ा जाए।
आज-कल एक नया लालच जुड़ गया है- मास्क और हैंड सैनिटाइजर का लालच। न जाने कितने रूप में उपलब्ध हैं ये। भाँति-२ के मास्क और तरह-२ के छोटे, कॉम्पैक्ट, पॉकेट साइज सैनिटाइजर की बोतलें गज़ब का आकर्षण पैदा करती हैं। अब आप किसी से मिलें। आपका मास्क सामने वाले से बेहतर हो तो गर्व होता है। आत्म विश्वास बढ़ जाता है। सामने वाले को बेचारे की नज़र से देखने का जो आनन्द मिलता है कि बस पूछिये मत। इस पर आप जेब से एक खूबसूरत डिज़ाइन की बोतल से सैनिटाइजर निकालकर लगा लें और अपने ही बढ़ते घमण्ड को कम करने के लिए एक जोक भी छोड़ दें तो सोने पे सुहागा। बन गया भोकाल। सामने वाला चारों खाने चित्त और आप विजयी😁। कुछ ही पल में एक मानसिक लड़ाई के विजेता और आपकी ताजपोशी। हा हा ......! गज़ब होता है इन्सान।
फिलहाल.....! ये मास्क और सैनिटाइजर हैं बेहद जरूरी पर खरीदने को दिल नहीं करता। एक दो बार ही खरीदें होंगें, वो भी दिल पर पत्थर रखकर। ये चीजें कोई गिफ्ट कर दे तो मजा ही आ जाए। इस समय ये वस्तुएँ लालच की पराकाष्ठा पर हैं। यदि मेरे अगल-बगल का कोई व्यक्ति ईश्वर बनने की ख्वाहिश रखता हो तो उसका स्वागत है। हम उसे ईश्वर का दर्जा देने को तैयार हैं..........😜।
~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२७.०६.२०२०
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