"अव्यवस्थित वर्तमान ही सुव्यवस्थित भविष्य की नींव रखता है।"
यूँ ही बैठे-२ ऊपर वाली लाइनें लिख दीं। फिर सोचता रहा कि इसका मतलब क्या है? मने.... लिखी क्यों? लेकिन सही तो बहुत लग रही हैं! ऐसे ही नहीं लिख गया मुझसे ! काफी देर मशक्कत करने के बाद भी कहीं फिट नहीं कर पाया। कोई नहीं ...... अब लिख दिया है तो उगलना भी हैं ....तो सोशल साइट्स पर उगल भी दिए! हर जगह! फिर भी मन में एक कचोट बानी ही रही....
रात में एक सपना आया। कहीं जा रहा था। रास्ते में सड़क खुदी पड़ी थी और जमकर भीड़ लगी थी। जब धीरे-२ बढ़ते हुए गड्ढे के बगल से गुज़रा तो तो वहां पर एक साइन बोर्ड लगा था जिस पर लिखा था "कार्य प्रगति पर है। असुविधा के लिए खेद है।" अब सुबह उठे तो सोचे की ऐसा सपना भी कोई देखने वाली चीज है! हें नहीं तो ..... इन्हीं विचारों की उधेड़-बुन में शाम को लिखी इन लाइनों से रात के सपने का कनेक्शन मिल गया। हा हा ..... क्या गज़ब का कनेक्शन निकला!
अब आगे से कोई भी संस्था जो किसी लोक निर्माण व्यवस्था से जुड़ी हो तो मेरी लिखी इन लाइनों का प्रयोग कर सकती है कि "अव्यवस्थित वर्तमान ही सुव्यवस्थित भविष्य की नींव रखता है।" कृपया निर्माण के इस कार्य में सहयोग करें। अब भला किसी भलाई के कार्य के लिए खेद क्यूँ प्रकट किया जाए जैसा कि पहले की लाइनों "कार्य प्रगति पर है। असुविधा के लिए खेद है" , में किया जाता रहा है।
PWD और नगर निगम वाले मेरी इस लाइन का मुफ़्त इस्तेमाल करने के लिए आज़ाद हैं। बस मेरे नाम का प्रयोग अवश्य करें।😎
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