खुद से ईमानदार बहुत थे,आदतन जिम्मेदार बहुत थे,
बेईमानी का तो सवाल ही न था, तुम रुके होते तब तो कुछ कहते।
तुमने आवाज न दी और न किया इंतज़ार और सफर में आगे चल दिये,
दिल को मनाया और रास्ते बदल दिए हमने, बेगैरत तेरा इंतज़ार क्या करते।
Thursday, 9 May 2019
अब तेरा इंतज़ार नही...
मिट्टी के घर याद आते है ....
बेमतलब का सबसे मिलना जुलना था,
रिश्ते वो पक्के बहुत याद आते हैं।
गर्मी की छुट्टी वो दादी-नानी का गाँव,
आम के बाग और ताल-तलैया याद आते हैं।
तपती गर्मी, भरी दुपहरिया और सखी-सहेलियाँ
सावन की ऋतु के वो झूले याद आते हैं।
छत पर सोना और वो बूढ़े पीपल की सरसराहट
खुले आसमान में वो तारे याद आते हैं।
चाचा के संग रात में खेतों को पानी देना,
भूत-पिशाचों की वो कहानियां याद आती है।
पेड़ों पर चढ़ना उतरना और ढेर सारी मस्ती,
खुद से तोड़े वो आम और जामुन याद आते हैं।
वो वर्षा ऋतु की पहली बारिश और जमकर भीगना
वो सोंधी खुशबू और मिट्टी के घर याद आते हैं।
Monday, 6 May 2019
अब चैन नहीं ........
सोचता हूँ क्या लिखूँ ?
“क्या लिखूँ“ अब इस पर भी लिखूँ ।
कुछ न सोचूँ अब, तो इसके लिए भी सोचूँ ,
ज़िन्दगी के दर्शन के दर्शन को सोचूँ ।
भीड़ में रहूँ तो तनहाई के लिए सोचूँ ,
और तनहा होने पर क्यूँ हूँ तनहा ये सोचूँ ।
बातों का ट्रानजिस्टर लिए घूमता हूँ,
पर शुरूवात कहाँ से करूँ ये सोचूँ।
जी भरकर देखने को जी चाहता है और,
अब सामने हो तो क्या देखूँ मैं ये सोचूँ।
ज़िन्दगी की दौड़ में मैं सबसे आगे रहना चाहता हूँ,
और ज़िन्दगी में इतनी भागम-भाग क्यूँ है, मैं ये सोचूँ।
बेचैन रहने की फ़ितरत है तेरी आनंद,
और आता क्यूँ नहीं चैन मैं ये सोचूँ।
जिंदगी से यारी रख।
मन में न कोई बीमारी रख
सब से बात चीत जारी रख ।
कोई इतना भी बुरा नही इस जहां में,
तू बुराई में अच्छाई की खोज जारी रख।
जिंदगी के हर मोड़ पर मिलेंगे नए लोग,
तू गैरों में अपनों की पहचान जारी रख।
दीवाने हो जाये लोग तेरे,
बातों में अपने गज़ब की मस्ती रख।
दौलत बेहिसाब जमाने में,
तू अपनी जेब खाली तो रख।
कुछ जाएगा तभी कुछ आएगा,
तू इस लेन देन की कला में संतुलन रख।
खिंचते चलें आएंगे लोग तेरे पास,
इतना खुद में आकर्षण रख।
सब कुछ संभव है तुझसे,
तू अपने किरदार में ईमानदारी रख।
बड़ी मुश्किल से मिलती है ये जिंदगी,
बरक़रार तू इस जिंदगी से यारी रख।
दिल धड़क के रह गया....
कंचन काया चमकीली आँखें,
देखें ऐसे जैसे भीतर तक झांकें ।
चाँदी सी आभा वो न जाने कहाँ से लाए,
पड़ जाएँ जो सामने तो पलके मेरी झुक जाएँ।
वो बला की ख़ूबसूरत है क़ातिल हैं निगाहें,
वो हक़ीक़त है दिल इसे मान ही न पाए ।
सोच कर जिसे ये तन बदन सिहर सा गया,
वो यूँ आ गए सामने कि दिल धड़क के रह गया।
Thursday, 2 May 2019
कितने काम अधूरे रह गए!
जब से हम किसी काम के लायक हुए,
समय का ठिकाना नही इतने व्यस्त हुए।
जब कोशिशों में थे तब जी भर के जिए,
ऊंचाई पर तो सपने सभी अधूरे रह गए।
घुमक्कड़ी ये दिल था जब चाहा चल दिए,
अब कहाँ जाए बस मन मसोस कर रह गए।
समय अपना था पल भर में पूरी उम्र जिए,
इस गुलामी में उम्र पूरी पल में गुजार गए।
दूसरों को संभालने में खुद की सुध लेना भूल गए,
नाम तो हमने खूब कमाया पहचान अपनी भूल गए।
ये करेंगे वो करेंगे कामों की लिस्ट लंबी बनाते रह गए,
बस ख्याल ही बुनते रहे कितने काम अधूरे रह गए।
लापता हूँ कब से मैं!
लापता हूँ कब से मैं,
ढूढ़ने को तुझे जो निकला मैं।
जगह अनजान नई हैं गलियाँ सभी,
अब नहीं पता कि कहा हूँ मैं।
न तेरा नाम और न गली का पता,
कैसे पूछूँ तेरे घर का पता मैं।
बगल से गुजरो हो जाये दीदार तेरा,
तू रहती आस पास, हूँ पक्का मैं।
सिग्नल मिल रहे मेरे राडार में है तू,
तेरे विकिरणों को पकड़ने में माहिर मैं।
मुझे पहचानोगे नही बस ये समझ लो,
तेरा दीवाना हूँ तुझसा ही दिखता मैं।
बेसब्र हो रहा हुई बहुत देर अब,
तेरी खोज में कब से लापता मैं।