जब से हम किसी काम के लायक हुए,
समय का ठिकाना नही इतने व्यस्त हुए।
जब कोशिशों में थे तब जी भर के जिए,
ऊंचाई पर तो सपने सभी अधूरे रह गए।
घुमक्कड़ी ये दिल था जब चाहा चल दिए,
अब कहाँ जाए बस मन मसोस कर रह गए।
समय अपना था पल भर में पूरी उम्र जिए,
इस गुलामी में उम्र पूरी पल में गुजार गए।
दूसरों को संभालने में खुद की सुध लेना भूल गए,
नाम तो हमने खूब कमाया पहचान अपनी भूल गए।
ये करेंगे वो करेंगे कामों की लिस्ट लंबी बनाते रह गए,
बस ख्याल ही बुनते रहे कितने काम अधूरे रह गए।
Thursday, 2 May 2019
कितने काम अधूरे रह गए!
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment