नादान नही हूँ मैं बिल्कुल
और हरकतें नही बचकानी
दिल में हैं बेचैनियाँ मेरी
बैठो सुनाऊं अपनी कहानी ।
विशाल समुद्र शांत सा
पर लहरें क्यों अशांत
इतनी व्याकुल, व्यग्र, बेचैन
आतुर सुनाने को वृतान्त।
समुद्र के किनारे बैठ तुमने
लहरों का शोर सुना होगा
पाकर खो देने का एहसास
इससे करुण रुदन क्या होगा।
हम कैसे रोएं
दर्द कैसे बताएं
आंसू बहुत निकले
पर कैसे दिखाएं।
तड़प बहुत है मिलने को
विरहन सी विचरती हैं
मिलने को प्रियतम से
कोशिशें हज़ार करती हैं।
उम्मीद नही मिलने की
पर दिल को कैसे समझाएं
दिल भी लहरो जैसा है
किनारे तक आ ही जाए।
पहुंच किनारों पर भी
हाथ निराशा लगती है
होकर बेसुध सी तब ये
खा कर पछाड़ गिरती हैं।
न मिलने का दर्द सही
पर मिलकर वो बिछुड़ गया
तन मन से होकर वो मेरे
अंदर से ही भेद गया।
मालूम इसे अपनी गति फिर भी
खुद को ये रोक न पाए
दिल के हाथों मजबूर है
इस पागल को कौन समझाए।
मत पूछो मेरी हालत कि
इस दिल में दर्द बहुत है
रात के सन्नाटे में डर है लगता
और दिन के शोर में सुकून बहुत है।
टूटे दिल वाले साथ को मेरे
अब खुद मुझ तक आते हैं
पाने को राहत वो बैठ बगल में मेरे
अपनी आप बीती सुनाते हैं।