Saturday, 4 December 2021

जीवन के खेल में!

एक-२ पल को जीना ऐसे 
जैसे हो एक खिलाड़ी तुम।
जो कुछ भी तुम करना देखो 
खुद पर अपनी नज़र रखना॥

दुनिया की भीड़ में देखो 
तुम खुद को खो मत देना।
कुछ पल को ही सही तुम 
साथ अपने ज़रूर बैठना॥

कभी जो तुम थोड़ा सा 
समझने में कमजोर पड़ना।
इर्द-गिर्द तुम अपने सदा 
कुछ मित्र समझदार रखना॥

©️®️ज़िन्दगी के खेल में/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०४.१२.२०२१

#अनुनाद #खिलाड़ी #मित्र #नज़र #जीवन #ख़ेल

Thursday, 30 September 2021

एक !

वैसे तो एक और एक मिलकर दो होते हैं पर तुम्हारे और मेरे रिश्ते की गणित भी अजब है !

यहाँ…..

तुम भी “एक”, मैं भी “एक” और हम दोनों मिलकर भी “एक”!

शायद इस एक के अलावा जो “एक” अदृश्य है वही प्यार है। 

या

मुझमें और तुझमें जो अनचाही/ग़ैर-ज़रूरती/नापसंद, चीज़ें/आदतें/इच्छाओं को त्याग कर जो कुछ भी हम दोनों में कम हुवा था उसे हम दोनों ने मिलकर पूरा कर दिया और फिर सदा के लिए “एक”हो गए। 

वैसे प्यार गणितीय तर्कों को नहीं मानता और मेरा रसायन शास्त्र कमजोर है, इसलिए गणितीय फेरों में उलझा हुवा हूँ। वैसे हमारे रिश्ते की ऊपर की हुयी गणितीय व्याख्या भी कम व्यापक नहीं है। 

#chemistry #mathematics #love #bonding #unsolved

©️®️एक/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/३०.०९.२०२१

Tuesday, 21 September 2021

सलीका !

कुछ इस तरह सलीके से जीने की कोशिश कर रहा हूँ
मैं अपने कमरे में हर टूटी हुई चीजें जोड़कर रख रहा हूँ।

टूटा बिखरा मेरा ये दिल है जिसको फिर से सँवार रहा हूँ
कुछ नहीं अब और टूटने को इसलिए बेख़ौफ़ चल रहा हूँ।

गँवा कर क़ीमती चीजों को दुःख तो बहुत हो रहा लेकिन 
मैं अभी भी ज़िन्दा हूँ और बस इसी की ख़ुशियाँ मना रहा हूँ।

©️®️टूटा दिल/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२१.१२.२०२१

Thursday, 16 September 2021

आतुर

तेरे स्वागत को
आज होकर तैयार 
खड़े हैं 
सब इंतज़ार में,
ये मौसम…
ये बारिश…
ये चाय…
और हम भी…
बोलो…
मिलने को तुमसे 
गुज़ारिश 
और कैसे करते?
इससे ज़्यादा
आतुरता
और कैसे दिखाते?
स्वागत को तुम्हारे 
और किस-२ को 
बुलाते?
©️®️आतुर/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/१६.०९.२०२१

Tuesday, 14 September 2021

इस शहर में...

इस शहर में जीने के हैं रास्ते कई
पर अपनी शर्तों पर ज़िन्दगी यहाँ आसान नहीं।

जी हुज़ूरी में मिलती नित तरक़्क़ी नई 
पर ग़लत को ग़लत कहना यहाँ आसान नहीं।

इधर-उधर बनाए रखिए नज़रें कई
काम से काम रखने से होता कोई काम नहीं।

ऊँचाई पर पहुँचने को, की कोशिशें कई
इस दौड़ में भीड़ से खुद को बचाना आसान नहीं।

बनने को ख़ास हमने बदले कलेवर कई
इतने बदले कि अब अपनी शक़्ल तक याद नहीं।

इस शहर में रहते हैं बड़े नाम कई और
इन नामों में अपना नाम याद रखना आसान नहीं।

©️®️इस शहर में/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/१४.०९.२०२१

Saturday, 11 September 2021

कब लिखते हो?

वो पूछते है कि कब लिखते हो?
जब तुम जीवन की परेशानियों में बस परेशान होते हो,
तब मैं लिखता हूँ।

वो पूछते है कि कब लिखते हो?
जब बाहर का शोर मेरे भीतर के शोर के स्तर पर पहुँचता है,
तब मैं लिखता हूँ।

वो पूछते है कि कब लिखते हो?
जब माहौल का तनाव मेरे हृदय को छू कर चला जाता है,
तब मैं लिखता हूँ।

वो पूछते है कि कब लिखते हो?
जब कोई क्षुब्ध हृदय व्यथा चाहकर भी नहीं कह पाता है,
तब मैं लिखता हूँ।

वो पूछते है कि कब लिखते हो?
जब मैं बेहद खुश होता हूँ तो मैं उस पल को बस जीता हूँ,
तब मैं नहीं लिखता।

सुख से ज्यादा मुझे दुःख पसंद हैं!
संघर्ष के उन पलों में मैं अपना सर्वोत्तम संस्करण होता हूँ,
तब मैं लिखता हूँ।

©️®️लिखना/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/११.०९.२०२१

Sunday, 5 September 2021

जीवन गुरु !

कुछ मैंने सीखा भी और कुछ नहीं भी 
कहीं मिला सम्मान तो कहीं हमारा कटा भी 
जीवन के इस सफ़र में हे गुरु आपको 
हमने याद किया अच्छे में और बुरे में भी।

हे गुरु इस जग में तेरा कोई निश्चित रूप नहीं,
तू कभी मेरा अध्यापक भी तो कभी चपरासी भी,
पहली गुरु माँ थी तो हमने सीखा देना लार-दुलार और 
दुनियादारी सीखने में काम आयी पापा की चप्पल भी।

अपने हक़ के लिए लड़ना सीखा भाई-बहनों से 
अनज़ानो पर प्यार लुटाने को मिले कई मित्र भी 
जवाँ हुए तो हमको लगी थी एक मुस्कान बड़ी प्यारी 
जीवन के रंग देखे हमने प्यार में खाकर धोखा भी।

गणित विज्ञान कला हिंदी उर्दू के जाने ढेरों शब्द भी 
डेटा ट्रांसफ़र को काफ़ी होते देखो सिर्फ़ इशारे भी
पढ़ा लिखा खूब सारा इस दुनिया को समझाने को 
हुए जब समझदार तो हमने सीखा चुप रहना भी।

इस दुनिया की रीति अजब है अच्छी बातें अच्छी लगती सिर्फ़ किताबों में
पढ़ लिख कर जब इस खेल में आये तो हुआ संदेह कि मैंने कुछ सीखा भी?
साधी चुप्पी और शान्त खड़ा होकर मैंने ग़ौर बहुत फ़रमाया 
इस दुनिया में जीने को देखो, आना चाहिए रंग बदलना भी।

तीन दशक मैंने जिए, जी ली लगभग आधी ज़िन्दगी 
गुरु दिवस पर बधाई देने को आज, मैं हूँ बहुत आतुर भी 
इस जीवन में मिले हम सबको कई गुरु और उन सबसे
हमने सीखा चलना गिरना रोना और सम्भालना भी।

किसे मानूँ अपना गुरु और किसे नहीं, किसे रखूँ किसके पहले
बहुत विचार के बाद पाया की गुरुओं की कतार में ये जीवन भी
हे जीवन गुरु तुम सदा अपनी कृपा हम पर बनायें रखना 
ठोकर तो देना ही मगर हमें प्यार से रहते सहलाना भी। 

©️®️गुरु/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०५.०९.२०२१