Saturday 27 April 2024

मंज़िल और रास्ते

ग़र चाहते हो आनन्द मंज़िल पर पहुँचना,

मंज़िल से ज़्यादा रास्तों का ध्यान रखना।

 

तड़पते रह गये अपन मंज़िल की चाह में,

देखा ही नहीं कि तेरा गाँव भी था राह में।

 

समय कहाँ रुका है तेरे लिये या मेरे लिये,

निहारते बीते दौर को हाथों में तस्वीर लिए।

 

मैं फ़क़त ख़्वाब बुनता रहा तुझे पाने को,

रातों में सोया नहीं सोये भाग जगाने को।

 

मैंने लिखना छोड़ दिया अब क्या फ़ायदा,

भरे घावों को फिर कुरेदने से क्या फ़ायदा।

 

मैंने नशे करके भी देख लिये  दिलरुबा,

ये कदम लड़खड़ाए तो बस तेरे नाम पर 

 

नाम आनन्द है इसलिए खुश तो रहना ही था,

मुझे तेरा नाम और ये ग़म दोनों छुपाना ही था।

 

मैंने लिखना छोड़ दिया अब क्या फ़ायदा,

भरे घावों को फिर कुरेदने से क्या फ़ायदा।


©️®️मंज़िल और रास्ते/अनुनाद/आनन्द/२७.०४.२४



 



Saturday 27 January 2024

डरता हूँ...

 मैं डरता हूँ 

जब मैं किसी और को 
हद से ज़्यादा 

झुकते हुए देखता हूँ
किसी के पैर छूते देखता हूँ 
आज्ञाकारी बनते देखता हूँ
रोल मॉडल बनाता देखता हूँ
अनावश्यक सम्मान करता देखता हूँ
दुनिया के हिसाब से चलता देखता हूँ
दृढ़ अनुशासन में देखता हूँ
व्यस्त देखता हूँ 
अपनों की चिंता करते देखता हूँ 
भविष्य के विषय में सोचते देखता हूँ 
सफल होते देखता हूँ
उसके बाद का अकेलापन देखता हूँ 
लोगों को उसकी तरफ़ उम्मीद लगाये देखता हूँ
निर्णय लेने में अकेला खड़ा देखता हूँ 
हर गलती का ज़िम्मेदार बनते देखता हूँ
ख़ुद से ही लड़ता देखता हूँ 
अपनी ही सफलताओं से डरता देखता हूँ ।

मैं डरता हूँ 
जब मैं किसी और में 
अपने आप को देखता हूँ!

©️®️डरता हूँ/अनुनाद/आनन्द/२७.०१.२०२४



Saturday 6 January 2024

पहनावा


“व्यक्ति को कपड़े पहनने का अधिकार होना चाहिए…. न पहनने का नहीं !”


सच लिखूँ तो बिना कपड़ों के तो केवल पशु-पक्षी ही ख़ूबसूरत दिखते हैं। 


मानव प्रजाति तो कपड़ों में ही झेली जा सकती है वरना इससे बेकार देखने लायक़ दूसरी कोई चीज नहीं। झेला जाना मैंने इसलिए लिखा कि खूबसूरत होने के लिए कपड़ों के साथ व्यवहार का उत्तम होना भी अनिवार्य है। 


हाँ कुछ डिज़ाइनर लोग कपड़ों को कुछ आड़ा-तिरछा काट एवं सिल कर इसमें भिन्नता तो ला सकते हैं पर कपड़े पहनना तब भी अनिवार्य है। “डोरियों को कपड़ों की संज्ञा नहीं दी जा सकती।”


निवेदन- जीवन सरल बनायें। इसलिए जो सम्भाल सकें उसे ही पहनें। उसके बाद ही आप अपनी, समाज और राष्ट्र की प्रगति के विषय में सोचने का मौक़ा निकाल पाएँगे!


नोट:- उपरोक्त सभी विचारों का बन्द कमरों से कोई वास्ता नहीं है। अपनी निजता के पलों में आप स्वयं ईश्वर हैं। 


“Keep your privacy private.”


प्रणाम🙏


©️®️पहनावा/अनुनाद/आनन्द/०६.०१.२४

Sunday 31 December 2023

बदला कुछ नहीं

गुजरता यहाँ कुछ भी नहीं 

होता नया कुछ भी नहीं 

नज़रें मिली थी तुझसे बिछड़ते वक़्त 

मैं आज भी हूँ ठहरा वहीं !


चल तो दिये थे पहुँचे कहीं नहीं 

रास्ता लम्बा ये तुझ तक जाता नहीं 

मंज़िल की खोज मैं क्यों करता भला 

जब सफ़र में तू हमसफ़र नहीं !


उम्र बीती पर बीता कुछ नहीं 

आगे बढ़े पर बढ़ा कुछ भी नहीं 

२३ से २४ हुवा पर पूछों बदला क्या 

यादें धुँधली हुईं भूला कुछ नहीं!


©️®️बदला कुछ नहीं/अनुनाद/आनन्द/३१.१२.२०२३



Sunday 17 December 2023

मुस्कुरा दीजिए

यूँ भी क्यूँ इतना शर्म कीजिए,

इस ओर भी इक नज़र कीजिए …


परेशानी अपनी कुछ यूँ कम कीजिए,

कोई काम हो तो हमारा नाम लीजिए …


दिलों के सौदागर से एक सौदा कीजिए,

दिल की एक कहानी हमारे सुपुर्द कीजिए …


शोख़ इस चेहरे से क़िस्से हज़ार कीजिए,

बस इन क़िस्सों में नाम हमारा कीजिए …


स्याही ये लिखने की न यूँ जाया कीजिए,

सूखने से पहले कोई तो इशारा कीजिए …


मौक़ा निकाल कर लखनऊ घूम लीजिए,

कई पार्क हैं किसी में हमसे मिल लीजिए …


नवाबों के शहर में हैं बस इतना कीजिए,

देख कर हमारी ओर बस मुस्कुरा दीजिए …


©️®️मुस्कुरा दीजिए/अनुनाद/आनन्द/१७.१२.२०२३




Monday 11 September 2023

लखनऊ की बारिश (११.०९.२०२३)

अमां ऐसी भी कोई बात होती है, 
भला ऐसी भी कोई रात होती है….!

मुझे सोते से जगाया गया कि देखो जरा 
मैंने कहा इतने शोर में भी कोई बात होती है….!

कल रात हमने देखा ऐसा मंज़र 
ऐसी भी भयानक बरसात होती है….!

किसी हृदय की प्रबल वेदना होगी
वरना कहाँ अब ऐसी बरसात होती है….!

यूँ चमकती बिजली का गरजते जाना
डरते दिल ने कहा हर रात की सुबह होती है….!

फूट-फूट कर भर दम रोना-दहाड़ना 
ये टूटे दिल की आम बात होती है….!

ये बेचैनी में रात-२ भर करवटें बदलना 
ये नये आशिक़ों की पुरानी बात होती है….!

दिल में जहर दबाने से कहीं अच्छा
फट पड़ना भी राहत की बात होती है….!

जिसने जगाया मुझे उसे सोने को कह दिया 
ऐसी रात में सोते रहने की अलग बात होती है….!

कल मैं और प्रकृति दोनो अनुनादित थे,
दिल की बात का इजहार जरूरी बात होती है....!

©️®️ लखनऊ की बारिश/अनुनाद/आनन्द/११.०९.२०२३


Friday 21 July 2023

बिछड़ गए !

भटकना नसीब में था 
इसीलिए
तुमसे बिछड़ गए…..!

आवारगी फ़ितरत न थी 
मगर 
घर से निकल पड़े।

एक शहर से दूसरे घूमे बहुत 
मगर 
कहीं ठहरना न हुवा….!

लोग बहुत जानते है यहाँ हमें
मगर 
कोई अपना नहीं….!

ठहरना चाहा बहुत हमने 
मगर 
कहीं तुम मिले ही नहीं….!

रास्तों से दोस्ती कर ली 
और 
आशियाँ कोई बनाया नहीं….!

भटकना नसीब में था 
इसीलिए
फिर दिल कहीं लगा ही नही…..!

©️®️बिछड़ गए/अनुनाद/आनन्द/२१.०७.२०२३