Thursday 2 May 2019

अब वो बात न थी!

बरसों बाद बात हुयी तो करने को कोई बात न थी,
न कोई सवाल न जवाब और न ही कोई शिकायत थी।

दो दिल थे बेहद नज़दीक थे लेकिन अब धड़कनों में वो कशिश न थी,
हाथों में हाथ होते थे जब साथ थे लेकिन अब साथ चलने की हिम्मत न थी।

जुदा थे दूर शहरों में रहते थे लेकिन शहरों में इतनी भी दूरियाँ न थी,
मिलने की कोशिशें कर सकते थे लेकिन अब पास आने की तड़प न थी।

मिले तो आँखो में पहली सी चमक थी लेकिन किरदारों में वो बात न थी।
फिर से बन सकती थी कहानी नयी लेकिन लिखने को क़लम में मेरे स्याही न थी।

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