Thursday, 30 April 2020

कैदी (इरफ़ान ख़ान को समर्पित)

मैं एक कैदी 
इस शरीर में,
लोग कहते
कैद ही रहूँ...
तो बेहतर!
आजाद न होने की,
मांगते सभी दुवाएँ...
कैद हो लंबी,
देते रहते दाना-पानी,
शरीर रूपी जेल की
करते रंग रोगन,
लेकिन कब तक?
कैद किसे पसन्द?
होना तो है,
एक दिन आज़ाद...
वो दिन 
जश्न का होगा!
मेरे लिए, 
आज़ाद होना,
कैद से।
नही रहूँगा तब,
मैं,
कैदी।

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