Monday, 15 February 2021

जीवन उत्सव

तुम क्या समझो यह जीवन उत्सव,
पल भर फुरसत में अपनों के साथ तो बैठो!
मंद-तीव्र भावों में चिंता नहीं अवसाद नहीं
सूखे इन चेहरों पर खिलती मुस्कान तो देखो।

पाना और संचय करना बेहद जरूरी,
मगर फकीरी अंदाज का आनन्द तो देखो!
व्यर्थ क्यों करता है तू चिंता कल की,
आओ आकर आनंद की चौपाल में बैठो।

©️®️अनुनाद/आनन्द कनौजिया/१५.०२.२०२१

Friday, 12 February 2021

कवि या शिकारी !

शख़्श एक, भाव कई, शब्द अनेक,
शब्दों से बुनते जाल में फँसा कवि एक।

क्रोध मोह लोभ, दिल के शिकारी कई,
भावों का चारा देखकर, होते शिकार कई।

©️®️ अनुनाद/आनन्द कनौजिया/१२.०२.२०२१

Sunday, 7 February 2021

सामाजिक बराबरी पर चर्चा

जिस दिन बॉलीवुड/म्यूज़िक इंडस्ट्री में लिखे/चलचित्रित किए जाने वाले गीत male fantacy के साथ साथ female fantasies को भी एक बराबर से प्रस्तुत करने लगेंगे और audience उसे बिना किसी सामाजिक प्रतिरोध के स्वीकार भी कर लेंगे तो मैं समझूँगा कि अब समाज औरत-मर्द की बराबरी के लिए तैयार है। वरना तो बराबरी की सारी बातें बकवास हैं। फ़ेमिनिस्ट लोग ग़लत जगह हाथ पैर चला रहे हैं। 

अपवाद:- भोजपुरी सिनेमा वाले इन सबसे ऊपर उठ चुके हैं। उन्होंने १०-१५ साल पहले ही ये प्रयास शुरू कर दिए थे। 

चर्चा स्त्रियों से :- अगर आप आज कल के गानों को एंजॉय करते हैं जिसमें लड़कियों को एक वस्तु की तरह ट्रीट किया जा रहा है तो आप अभी बहुत ही कम उम्र वर्ग से सम्बन्धित हैं या आपको मतलब ही नहीं हैं क्यूँकि आप गाने सुनती ही नहीं हैं। यदि इन दोनो के अलावा से आप सम्बन्ध रखती हैं तो यह चिन्ता का विषय है । हम सबको मिलकर इस का विरोध करना होगा ।

©️®️अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०१.०२.२०२१

Monday, 1 February 2021

आतंकवाद की परिभाषा पर चर्चा

जिस तरह से देशद्रोही, आतंकवादी और घुसपैठिए शब्दों का इस्तेमाल हमारे देश में आम हो गया है तो इसे देखकर लगता है कि  जल्दी ही असली देशद्रोही, आतंकवादी और घुसपैठिए लोगों के लिए नई शब्दावली की खोज करनी पड़ेगी। वरना असली नकली में फर्क करना मुश्किल हो जाएगा। 🤓

गज़ब तो तब है जब कि न्यूज़ चैनल वाले खुलेआम आतंकियों को टी वी पर दिखा रहे हों और नेता उन पर डिबेट कर रहे हैं, फिर भी सरकार ऐसे आतंकवादियों को खुला घूमने दे रही है। 😂

अब समय आ गया है या तो नए शब्दकोष विकसित किये जाएँ या फिर देशद्रोही, आतंकवादी और घुसपैठियों को वर्गीकृत किया जाए जिससे इनमे अंतर स्पष्ट हो सके। जैसे- देशी आतंकवादी या विदेशी आतंकवादी! नहीं तो ग्रेडिंग व्यवस्था लागू हो जैसे ग्रेड 1, 2 ,3 और बोल-चाल की आम भाषा में इनका स्पष्ट प्रयोग किया जाए जिससे देश की आम जनता फर्क कर सके और कब वाकई में चिंतित होना है और कब हल्के में लेना है🤔।

एक आतंकवादी जैसा कि हमने लघु फिल्मों में टी वी के माध्यम से देखा है कि वर्षों की मेहनत के बाद आतंकवादी बन पाता था। इसके बाद जान की बाजी लगाने के बाद ही कहीं उसे आतंकवादी की उपलब्धि प्राप्त होती थी। किन्तु भारत देश में आतंकवादी शब्द का इस्तेमाल इतना आम हो गया है कि अब आतंकवादियों को भी आतंकवादी बनने का क्रेज नहीं रहा। आतंकवादी नाम की अब वो कीमत नहीं रहीं कि एक आदमी अब इसके लिए अपनी जान दे जब कि एक साधारण सा धरना देकर कोई भी आतंकवादी बन सकता है। 🤣

विचार करने वाली बात है।🤔 

क्यूँ??????😏

नोट:- यह केवल हास्य-व्यंग्य से सम्बंधित लेख है। देश में चल रही वर्तमान घटनाओं से इसका परोक्ष रूप से कोई संबंध नहीं है। किसान आंदोलन जैसी घटना तो मुझे पता तक नहीं। मैं न तो सरकार विरोधी हूँ और देश विरोधी तो मैं हो ही नहीं सकता ।  कृपया इस लेख को अन्यथा न लें।

©️®️अनुनाद/आनन्द कनौजिया/३१.०१.२०२१

Sunday, 31 January 2021

टैगलाइन!

"अव्यवस्थित वर्तमान ही सुव्यवस्थित भविष्य की नींव रखता है।"

यूँ ही बैठे-२ ऊपर वाली लाइनें लिख दीं। फिर सोचता रहा कि इसका मतलब क्या है? मने.... लिखी क्यों? लेकिन सही तो बहुत लग रही हैं! ऐसे ही नहीं लिख गया मुझसे ! काफी देर मशक्कत करने के बाद भी कहीं फिट नहीं कर पाया। कोई नहीं ...... अब लिख दिया है तो उगलना भी हैं ....तो सोशल साइट्स पर उगल भी दिए! हर जगह! फिर भी मन में एक कचोट बानी ही रही....

रात में एक सपना आया। कहीं जा रहा था। रास्ते में सड़क खुदी पड़ी थी और जमकर भीड़ लगी थी। जब धीरे-२ बढ़ते हुए गड्ढे के बगल से गुज़रा तो तो वहां पर एक साइन बोर्ड लगा था जिस पर लिखा था "कार्य प्रगति पर है। असुविधा के लिए खेद है।" अब सुबह उठे तो सोचे की ऐसा सपना भी कोई देखने वाली चीज है! हें नहीं तो ..... इन्हीं विचारों की उधेड़-बुन में शाम को लिखी इन लाइनों से रात के सपने का कनेक्शन मिल गया। हा हा ..... क्या गज़ब का  कनेक्शन निकला! 

अब आगे से कोई भी संस्था जो किसी लोक निर्माण व्यवस्था से जुड़ी हो तो मेरी लिखी इन लाइनों का प्रयोग कर सकती है कि "अव्यवस्थित वर्तमान ही सुव्यवस्थित भविष्य की नींव रखता है।" कृपया निर्माण के इस कार्य में सहयोग करें। अब भला किसी भलाई के कार्य के लिए खेद क्यूँ प्रकट किया जाए जैसा कि पहले की लाइनों "कार्य प्रगति पर है। असुविधा के लिए खेद है" , में किया जाता रहा है। 

PWD और नगर निगम वाले मेरी इस लाइन का मुफ़्त इस्तेमाल करने के लिए आज़ाद हैं। बस मेरे नाम का प्रयोग अवश्य करें।😎

©️®️अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२८.०१.२०२१

Saturday, 30 January 2021

संयोग........मिलने का!

अचानक मुलाकात हो जाये
ऐसे संयोग अब नहीं होते क्या?

भीड़ में तुझसे आँखे मिल जाये
ऐसे मधुर योग अब नहीं होते क्या?

सुनकर मेरा नाम कोई जो पुकारे
तेरा दिल अब नहीं धड़कता क्या?

हिचकियाँ नही आती आज कल
तुमको अब हमारी याद नहीं आती क्या?

दिन में भी रहते हैं ख्वाबों में,
उन्हें रात में अब नींद नहीं आती क्या?

दोस्तों में बस उनकी बातें हो,
ऐसी महफिलें अब नहीं लगती क्या?

हमारे साथ की तलब नहीं लगती
मन मचलने की अब उम्र नहीं रही क्या?

बहुत दिन गुज़र गए बिना हाल-चाल के 
तुमको हमारी फिक्र अब नहीं रही क्या?

ख्यालों में बगल से रोज गुजरते हैं तेरे
मेरे होने की तुझे अब आहट नहीं मिलती क्या?

और एक उम्र मिली थी जो बहुत तेज बीत रही है,
अकेले बीतती इस उम्र से अब डर नहीं लगता क्या? 

कभी तो हमसे मिल लिया करो
मिलने को अब बहाने नहीं मिलते क्या?

लगता है बहुत दूर चले गए,
हमारे शहर अब आना नहीं होता क्या?

काश! आज अचानक तुमसे मुलाकात हो जाये
ऐ खुदा तू ऐसे संयोग अब नहीं बनाता क्या?

©️®️अनुनाद/आनन्द कनौजिया/३०.०१.२०२१

Wednesday, 27 January 2021

जीवन और अभियान्त्रिकी

जीवन को लेकर बड़ी-२ बातें करने वाले कभी-२ जीवन की आधारभूत बातों को भूल जाते हैं। जबकि इन आधारभूत बातों का पालन करके ही वे बड़ी-२ बात कर रहे होते हैं। लेकिन नियम किसी को नहीं भूलते, वो सब पर बराबर से लागू होते हैं।

विद्युत अभियांत्रिकी के विद्यार्थी लेन्ज़ के नियम को ही देख लें।  ये अभियांत्रिकी, विज्ञान, कुछ विशेष उत्पन्न करके कुछ नया नहीं बताएँ हैं, बस घर-गृहस्थी और समाज से निकले व्यवहार के सारांश को हम पर टोप दिएँ हैं और हम पढ़ाई काल से लेकर आज तक यही समझते रहे कि हम कुछ विशेष पढ़ लिए हैं और दुनिया से अलग हैं। सारी पढ़ी हुई परिभाषाएँ, नियम, कायदे, कानून तो हम अब चरितार्थ होते देख रहें हैं और असली में समझ तो अब आया है।

"ज़िन्दगी एक इंडक्शन मोटर है।" ज़िन्दगी की इससे अच्छी, सटीक, और कम शब्दों में पूर्णतः व्यवहारिक परिभाषा और कोई नहीं दे सकता। इसका मुझे घमंड भी है। ज़िन्दगी को परफेक्ट करना है तो एक बाह्य बल लगाकर इसे सिंक्रोनस मोटर भी बना सकते हैं। और फिर गति में थोड़ा सा परिवर्तन कर आप इसे जनरेटर और मोटर दोनों की भाँति प्रयोग कर सकते हैं। मतलब जब कमजोर पड़ें तो समाज से लें और मजबूत हो जाएँ तो समाज को वापस कर दें। अन्यथा की स्थिति में हर व्यक्ति इंडक्शन मोटर ही है। 

"इंडक्शन मोटर से सिंक्रोनस मोटर में खुद को बदल लेना ही सफलता है। बस........!"

आज का ज्ञान इतना ही! आगे इसका विश्लेषण जारी रहेगा...........

नोट: जो विद्युत अभियन्ता समाज को नहीं समझ पाते और अभियन्ता होने के दम्भ में ही रहते हैं उनके लिए ये लेख विशेष रूप से समर्पित। समय रहते समझना चाहें तो समझ लें अन्यथा ज़िन्दगी समझाएगी ही! वो भी अपनी लाठी से।
हा हा ....😁😎

अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२७.०१.२०२१